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गीता में दो पल ( भाग - 1 )

1- भोग - सम्मोहनकी गहराईको समझना योग है । जबभी हम भोगकी ओर पीठ करना चाहते हैं वह झटसे अपनी ओर रुखको मोड़ लेता है और इस प्रक्रियामें इतना कम समय लगता है कि हम इसके प्रति अनभिज्ञ ही ...

गीता में प्रभु के वचन

<> आसक्ति भाग - 04 <>  ● यहाँ गीताके कुछ चुने हुए सूत्रों को लिया जा रहा है जिनका सीधा सम्वन्ध आसक्ति से है ।  1-गीता - 2.48 > आसक्ति रहित कर्म , समत्व योग है ।  2-गीता -3.19+3.20 > अनासक्त कर्म प्रभुका द्वार खोलता है ।  3-गीता - 4.22 > समत्व योगी कर्म -बंधन मुक्त होता है । 4- गीता - 5.10 > आसक्ति रहित कर्म करनें वाला भोग संसार में कमलवत रहता है ।  5-गीता - 18.23 > आसक्ति , राग और द्वेष रहित कर्म , सात्विक कर्म होते हैं ।  6- गीता - 18.49 > अनासक्त कर्म से नैष्कर्म्य की सिद्धि मिलती है ।  7- गीता - 18.50 > नैष्कर्म्य की सिद्धि ज्ञान योग की परानिष्ठा है ।  8- गीता - 2.62 > मन द्वारा बिषयों का मनन उस बिषय के प्रति आसक्ति पैदा करता है ।  9-गीता - 3.34 > सभीं बिषयों में राग -द्वेष की उर्जा होती  है ।  10-गीता - 2.56 + 4.10 > राग ,भय और क्रोध रहित ज्ञानी होता है ।  <> आसक्ति इन्द्रिय , बिषय और मन ध्यान की पहली रुकावट है <> <> कर्मयोग - साधना में आसक्ति की साधना पहली साधना ...

आसक्ति को समझो

<> आसक्ति क्या है ? गीताके माध्यम से आसक्ति जो समझनें हेतु गीता के कुछ सूत्रों को यहाँ दिया जा रहा है ,आप इन सूत्रोंको  अपनें ध्यानका श्रोत बना सकते हैं ।  ● गीता श्लोक : 2.48+2.56+2.60+2.62+2.63+ 3.19+3.20+3.25+3.34+4.10+ 4.22+5.10+5.11+18.23+18.49+18.50  **  गीताके ऊपर दिए गए 16 श्लोकोको  यहाँ देखते हैं :---  1-● सूत्र - 2.48 :  योगस्थ: कुरु कर्माणि संगम् त्यक्त्वा धनञ्जय।  सिद्धयसिद्धयो : समः भूत्वा समत्वं योग उच्यते ।।  " आसक्ति रहित मनकी स्थिति समत्व योग की स्थिति है जहाँ अनुकूल - प्रतिकूल परिस्थितियों से मन -वुद्धि प्रभावित नहीं होते।"   " Action without attachment maintains the evenness of mind and this state of mind is called Evenness Yoga . "  2-● सूत्र - 2.56 :  दुखेषु अनुद्विग्नमना : सूखेषु विगतस्पृह : ।  वीत राग भय क्रोधः मुनिः स्थितधी: उच्यते ।।  " राग ,भय ,क्रोध रहित सुख -दुःख से अप्रभावित स्थिर - बुद्धि योगी होता है ।"  " man of equality and free from  moledy , anger and fear i...

गीता में महात्मा शब्द

<> गीता - 11.50 + 17.74 <>  ** गीता - 11.50 में संजय प्रभु कृष्ण केलिए महात्मा शब्द का प्रयोग किया है ।  ** गीता - 18.74 में संजय अर्जुन को महात्मा शब्द से संबोधित करते हैं ।आइये ! देखते हैं महात्मा शब्द को ।  <> गीता अध्याय - 11 के अंत में ( श्लोक -11.45 से श्कोक 11.55 तक ) अर्जुन प्रभु का चतुर्भुज विष्णु रूप देखना चाहते हैं और जब देख लेते हैं तब प्रभु अपनें सामान्य रूप में आजाते हैं ।प्रभु कहते हैं , हे अर्जुन इस संसार में किसी भी तरह मेरे इस रूप को कोई नहीं देख सकता जिस रूप को तूँ देख रहा है। प्रभु इतना कह कर अपनें सामान्य रूप में आजाते हैं । संजय भी प्रभु के चतुर्भुज स्वरुप को देखते हैं और चतुर्भुज स्वरुप देखनें के साथ प्रभको महात्मा शब्दसे संबोधित करते हैं अर्थात महात्मा शब्द विष्णुका संबोधन है।  ** गीता अध्याय - 18 के अंत में प्रभु अर्जुन से पूछते हैं , हे अर्जुन क्या शांत मन से मेरे संबाद को सुना और क्या तुम्हारा अज्ञान जनित मोह समाप्त हुआ ( गीता - 18.72 ) ? प्रभु की इस बात पर अर्जुन कहते हैं ( गीता - 18.73 ) आप की कृपा से मेरा मोह समाप्त गो ...

गीता अध्याय - 07

Title :गीता अध्याय - 7 Content: गीता अध्याय - 7 ** अध्याय में कुल 30 श्लोक हैं और सभीं श्लोक प्रभु श्री कृष्ण के हैं । ** यह अध्याय अर्जुन के प्रश्न -7 ( श्लोक - 6.37 + 6.38 - 6.39 ) के उत्तर रूप में बोला गया है ,अर्जुन अपनें प्रश्न में पूछते हैं :- -- " श्रद्धावान पर असंयमी योगी का योग जब खंडित हो जाता है तब वह भगवत् प्राप्ति न करके किस गति को प्राप्त करता है ? # इस अध्यायमें प्रभु अपनें 22 श्लोकोंके माध्यम से अर्जुनको सविज्ञान -ज्ञान रूप में यह बता रहे हैं कि हे अर्जुन तुम निराकार मुझको साकार माध्यमों से कैसे समझ सकते हो ? पहले प्रभुके उन श्लोकों को देखते हैं जिनका सम्बन्ध इस प्रसंग से है ।सविज्ञान ज्ञानका भाव है साकारसे निराकार में पहुँचना । श्लोक : 7.3+7.6 - 7.17 तक + 7.21- 7.7.26 तक + 7 7.28-7.30 तक -कुल 22 श्लोक । ^^अब इन श्लोकों में यात्रा करते हैं ।^^ * श्लोक : 7.3 > हजारों ऐसे लोग जो मुझे समझनें का यत्न करते हैं उनमें एकाध को सिद्धि भी मिल जाती है पर हजारों सिद्धोंमें कोई -कोई मुझे तत्त्व से समझ पाता है । तत्त्वसे समझना क्या है ? तत्त्व से समझना अर्थात उसका द्र...

गीता तत्त्व - 6

यं यं वापि स्मरन् भावं त्यजति अन्ते कलेवरम् ।  तम् तम् एव एति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ।।  ~~ गीता - 8.6 ~~  <> यहाँ युद्ध क्षेत्र में दोनों सेनाओं के मध्य प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन से क्या कह रहे हैं ? ,आप इसे ध्यान -बिषय पर एकांत में  सोचना ।<>  °° ज़रा सोचना °°  ^ अभी युद्ध प्रारम्भ नहीं हुआ ,अर्जुन का रथ दोनों सेनाओं के मध्य खड़ा है ,अभी किसी भी पल युद्ध प्रारम्भ हो सकता है ,ऐसा युद्ध जिसमें औसतन 218700 लोग प्रति दिन मरनें वाले हैं और ऐसे समय नें कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं :---  ** हे अर्जुन! मौत की घटना जब घट रही हो तब मनुष्यके मनमें हो गहरे भाव उठ रहे होते हैं उनके आधार पर उसका अगला जन्म होता है ।**  ^ प्रभु श्री कृष्ण का यह सूत्र इतना स्पष्ट है कि उसकी यदि और स्पष्ट किया जाय तो इसका मूल स्वरुप बदल सकता है अतः आप स्वयं इसे समझनेंका प्रयत्न करें ।^   ** मौतके समय मनमें उठ रहे गहरे भाव , यह तय करते हैं कि उस मृतक को अगला जन्म कैसा मिलेगा ।  ** लौकिक और वैदिक दोनों प्रबृत्ति परक कर्म मनुष्य को संसारकी प्राप्ति कराते ह...

गीता - अमृत ( दो शब्द )

दो शब्द :  जब - जब गीताके सम्बन्धमें कुछ कहना चाहता हूँ , ऐसा लगनें लगता है जैसे कोई मुझे रोक रहा हो और यह कह रहा हो कि  मुर्ख ! यह क्या करनें जा रहे हो ?   * क्या जो तुम लोगों को बतानें की तैयारी कर रहे हो , उसे स्वयं ठीक -ठीक समझ पाए हो ?  * क्या तुम्हें यह पक्का यकीन है कि तुम जिस बीज को बोना चाह रहे हो वह पूरी तरह से पक चूका है ?  * इस प्रकार कुछ और मौलिक प्रश्न मेरे मन -बुद्धि पर डूब घास की तरह छा जाते है और मैं इस सम्बन्ध में आगे नहीं चल पाता लेकिन आज हिम्मत करके दो -एक कदम चलनें की कोशिश में हूँ और उम्मीद है कि इस मूक गीता -यात्रा में आप मेरे संग प्रभु की उर्जा के रूप में रहेंगे । आइये ! अब हम और आप गीताकी इस परम शून्यताकी यात्रामें पहला कदम उठाते हैं और यदि यह पहला कदम ठीक रहा तो अगले कदम स्वतः उठते चले जायेंगे ।  <> गीतामें सांख्य योगके माध्यमसे कर्म-योग की जो बातें प्रभु अर्जुन को बताते हैं , उन्हें जीवनमें अभ्यास करनेंसे सत्यका स्पर्श होता है लेकिन तर्कके आधार पर उन पर सोचना अज्ञानके अन्धकार में पहुँचाता है ।  <> गीता जैसा...