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मूर्ति एक माध्यम

● मुर्तिके माध्यमसे ...  <> पिछले अंकमें आठ प्रकारकी मूर्तियोंको देखा गया जिनको भागवत दो भागों में देखता है ; एक चल मूर्ति होती है और दूसरी अचल ।  <> मुर्तिके माध्यमसे साधन करना अति सरल है और अति कठिन भी । साधना तन - मन का वह मार्ग है जो ब्रह्मके साथ एकत्व स्थापित करता है । ब्रह्मसे एकत्व स्थापित होना समाधि  है ,समाधि इन्द्रियों और मन -बुद्धिमें बह रही उर्जाके रुखको बदलती है। समाधि साधनाका फल है जहाँ साधक साकारका द्रष्टा - साक्षी होता है और इन्द्रियों ,मन -बुद्धिमें बह रही उर्जा निर्विकार होती है । समाधि वह द्वार है जिसके दरवाजे तक साकार की पहुँच होती है और जिसके अन्दर निराकार की अनुभूति । समाधिकी लोगोंनें परिभाषा बुद्धि स्तर पर बनाया है लेकिन उससे समाधि स्पष्ट नहीं होती । क्या विकल्प और क्या निर्विकल्प समाधि ,समाधि तो वह घडी है जब परम का द्वार खुलता है , साधक द्वार खुलना देखता है लेकिन क्षण भरमें वह समाधि में ऐसे खीच जाता है जैसे कोई ब्लैक होल किसी कोस्मिक बॉडी को खीच लेता है ।  * समाधिकी अनुभूति अब्यक्तातीत है उसे कोई आज तक ब्यक्त नहीं कर सके और जो...

मूर्तियोंके प्रकार

सन्दर्भ : भागवत : 11.27+12.20  <> मूर्तियाँ पूजा करनें की दृष्टि से 08 प्रकार की कही  गयी हैं :----- * पत्थर की * लकड़ी की * धातु की * मिटटी या चन्दन की * चित्रमयी * बालू या रेत की * मणि की * मन मयी ।  # इन मूर्तियों को दो भागों में विभक्त करते हैं ।  1- चल मूर्ति 2- अचल मूर्ति  1- चल मूर्ति :  ऐसी मूर्तियोंका प्रतिदिन आवाहन - विसर्जन करनें और न करनेंका विकल्प है ।  2- अचल मूर्ति : अचल मूर्तियोंका प्रति दिन आवाहन - विसर्जन नहीं करना  चाहिए ।  # बालू या रेतकी मूर्तिका प्रति दिन आवाहन - विसर्जन करना अनिवार्य है ।  # मिटटी , चन्दन , चित्र मयी मूर्तियोंको स्नान करना वर्जित है केवल मार्जन करना चाहिए ।  ~~~ ॐ ~~~

ब्रह्म और माया

● गीता ज्ञान-1● * पूरा ब्रह्माण्ड जो सीमारहित है जब रिक्त गो जाता है अर्थात जब इसमें जोई दृश्य नहीं रहता तब यह ब्रह्म होता है । * ब्रह्मसे ब्रह्ममें तीन गुणोंका एक माध्यम विकस...

कर्म से कृष्णमय कैसे हों ?

● कर्म से कृष्णमय कैसे हों ? 1- जो तुम्हारा कर्म है उसमें कर्म बंधनोंको समझो । 2- कर्म - बंधन वे तत्त्व हैं जो कर्म करनेंकी प्रेणना देते हैं । 3- कर्मका सम्बन्ध जबतक भोगसे हैं तबतक क...

प्रलय की तस्बीर

● प्रलयके प्रकार ● °° सन्दर्भ : भागवत : 3.11+ 11.4 + 12.4 °° ** प्रलय चार प्रकारकी हैं :--- 1- नैमित्तिक प्रलय : यह प्रलय 4.2 billion वर्षों के बाद होती है ।यह अवधि 1000 x ( चार युगोंकी अवधी ) के बराबर होती है ।इस प्रलय...

गीता और विज्ञान

● अपनीं स्थितिको समझो ●  " Human being is a part of the universe limited in time - space ."  Prof. Albert Einstein 1879 - 1955  प्रो. आइन्स्टीन अपना सारा जीवन लगा दिया प्रकृतिके उस नियमको समझनें में जो नियम इस ब्रह्माण्डको चला रहा है , आइन्स्टीनका वह नियम ही भगवान है । आइन्स्टीनके जीवनके 55साल (190 1-1955 तक) उस नियमकी खोजमें गुजरे लेकिन वह नियम न मिल सका। बुद्ध और महावीर 50 साल तक उस नियमको व्यक्त करनेंमें लगाये लेकिन ब्यक्त न कर पाए , तो आइये देखते हैं गीता और श्रीमद्भागवत पुराणके आधार पर उस परम सनातन नियम को ।  सन्दर्भ : भागवत सूत्र : 1.13+ 3 10+3.25+6.1 और गीता अध्याय - 13+15  ** काल ( time )के प्रभावमें प्राणसे भी वियोग होजाता है ।काल वह चक्र है जो प्रकृति की सूचनाओं को बनाता है , उनको अपनी ओर खीचता रहता है और अंततः उनको अपनें में समा लेता है । कालको समझनें केलिए विषयोंमें निरंतर हो रहे परिवर्तनको देखा जा सकता है ।  ** प्रभुसे प्रभुमें तीन गुणोंका एक माध्यम है जिसे माया  कहते हैं : इस बात को समझते हैं ।विज्ञान में टाइम -स्पेस (time -space ) है ...

राग - द्वेष

°° गीता - 3.34 °° इन्द्रियस्य इन्द्रियस्य अर्थे रागद्वेषौ ब्यवस्थितौ । तयो : न वशं आगच्छेत् तौ हि अस्य परिपन्थनौ ।। " इन्द्रिय - बिषय राग - द्वेषकी उर्जासे परिपूर्ण हैं , इनका सम्...