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गीता और विज्ञान

● अपनीं स्थितिको समझो ●  " Human being is a part of the universe limited in time - space ."  Prof. Albert Einstein 1879 - 1955  प्रो. आइन्स्टीन अपना सारा जीवन लगा दिया प्रकृतिके उस नियमको समझनें में जो नियम इस ब्रह्माण्डको चला रहा है , आइन्स्टीनका वह नियम ही भगवान है । आइन्स्टीनके जीवनके 55साल (190 1-1955 तक) उस नियमकी खोजमें गुजरे लेकिन वह नियम न मिल सका। बुद्ध और महावीर 50 साल तक उस नियमको व्यक्त करनेंमें लगाये लेकिन ब्यक्त न कर पाए , तो आइये देखते हैं गीता और श्रीमद्भागवत पुराणके आधार पर उस परम सनातन नियम को ।  सन्दर्भ : भागवत सूत्र : 1.13+ 3 10+3.25+6.1 और गीता अध्याय - 13+15  ** काल ( time )के प्रभावमें प्राणसे भी वियोग होजाता है ।काल वह चक्र है जो प्रकृति की सूचनाओं को बनाता है , उनको अपनी ओर खीचता रहता है और अंततः उनको अपनें में समा लेता है । कालको समझनें केलिए विषयोंमें निरंतर हो रहे परिवर्तनको देखा जा सकता है ।  ** प्रभुसे प्रभुमें तीन गुणोंका एक माध्यम है जिसे माया  कहते हैं : इस बात को समझते हैं ।विज्ञान में टाइम -स्पेस (time -space ) है जो संसारके उत्पत्तिका मा

राग - द्वेष

°° गीता - 3.34 °° इन्द्रियस्य इन्द्रियस्य अर्थे रागद्वेषौ ब्यवस्थितौ । तयो : न वशं आगच्छेत् तौ हि अस्य परिपन्थनौ ।। " इन्द्रिय - बिषय राग - द्वेषकी उर्जासे परिपूर्ण हैं , इनका सम्मोहन मनुष्यको प्रभुसे दूर रखता है । " " All five objects of senses have potential energies of attraction and aversion . These two elements are strong barrier in the way of truth - seekers . " ** कर्मयोग - साधनामें बिषय और इन्द्रिय साधना मूल साधन है जो मनमें सात्त्विक उर्जा का संचार करती है । मनुष्यका मन मूल रूप से सात्त्विक अहंकारके ऊपर कालके प्रभावसे उत्पन्न है लेकिन देहमें यह तीन गुणोंकी उर्जासे भरा हुआ होता है । मन आसक्त इन्द्रिय का गुलाम है और बुद्धि मनके अधीन रहती है ।मन - बुद्धि तंत्रसे गुण साधना द्वारा काम से राम की यात्रा होती है । जिस घडी मन - बुद्धिमें केवल सात्त्विक गुणकी ऊर्जा प्रवाहित हो रही होती है उस घडी वह मनुष्य प्रभुमय होता है । ~~~ ॐ ~~~

मोह वैराज्ञ

● मोह - वैराज्ञ ● °° गीता - 2.52 °° यदा ते मोहकलिलं बुद्धिः ब्यतितरिष्यति। तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतब्यस्य श्रुतस्य च ।। " जब तेरी बुद्धि मोह - दलदलसे बाहर होगी तब तुम सुनें हुए और सुननेंमें आनें वाले सभीं भोगोंसे तुम्हे वैराज्ञ हो जाएगा " भावार्थ :-- " मोह भोगकी रस्सी है और मोह - वैराज्ञ एक साथ एक बुद्धिमें नहीं बसते " " Fascination and renunciation donot stay together at a time in intellect " ** ऊपर ब्यक्त सूत्र ध्यान सूत्र है इसे आप अपनीं बुद्धिमें बसायें और जबभी मौका मिले संसारको समझनेंका , आप इसे प्रयोग कर सकते हैं । भोग - तत्त्वों जैसे काम , कामना , क्रोध , लोभ , भय , आलस्य , मोह और अहंकार की समझ ही मायाकी समझ है तथा माया की समझ माया मुक्त करती है । मायामुक्त योगी प्रभुसे परिपूर्ण होता है ~~~ ॐ ~~~

गीता श्लोक - 6.1

●● गीता श्लोक - 6.1 ●● अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः सः संन्यासी च योगिः ................ " कर्मफल आश्रय रहित कर्म जो कर रहा है वह संन्यासी और योगी है " ** अर्जुन अध्याय - 5 के प्रारम्भ में प्रश्न करते हैं , संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनः योगं च शन्ससि एतयो: यत् श्रेयः एतयो: एकं तत् मे ब्रूहि सुनिश्चितम् " हे कृष्ण ! आप कभीं कर्म संन्यासकी तो कभीं कर्म योगकी प्रशंसा करते हैं , आप मुझे उस एकको बताएं जो मेरे लिए श्रेय हो " °° प्रभु इस प्रश्नके सन्दर्भ में 60 श्लोकोंको बोलते है ( श्लोक - 5.2 - 6.32 ) और श्लोक 6.1 उनमें 29वां श्लोक है । ^^ अर्जुन के प्रश्न - 5 के सन्दर्भ में गीता अध्याय - 5 के श्लोक 5.6 , 5.10 , 5.11 महत्वपूर्ण हैं जो कह रहे हैं ----- > कर्मयोगके बिना कर्मसंन्यास दुःखमय होता है । > आसक्ति रहित कर्म , कर्म योग का फल है । > कर्म योगी समभाव में रहता है । * आसक्ति रहित कर्मके लिए देखें --- 1- गीता -18.49 , 17.50 2 भागवत : 8.1.14 गीता कह रहा है : आसक्ति रहित कर्म नैषकर्म्य की सिद्धिमें पहुंचता है जो ज्ञान योगकी परानिष्

●●तत्त्व ज्ञान ●●

●● तत्त्व ज्ञान ●● °1- लिंग शरीर क्या है ? स्थूल देह का पिंड , 05 कर्म इन्द्रियाँ और मन का योग , लिंग शरीर कहलाता है : भागवत - 11.22 °2- महत्तत्त्व क्या है ? 2.1> तीन गुणोंमें ( मायामें ) कालका प्रभाव महत्तत्त्वका निर्माण करता है । भागवत : 3.26 2.2 > महत्तत्त्व और कालसे तीन अहंकार निर्मित होते हैं जिनसे एक जीवके सभीं तत्त्व बनते हैं । भागवत : 2.5 °3- मन का निर्माण कैसे हुआ ? 3.1> सात्त्विक अहंकार और कालसे मन की उत्पत्ति है ।भागवत : 2.5+3.5+3.6+3.25+3.26+3.27 3.2> राजस अहंकार और काल से 10 इन्द्रियाँ + बुद्धि + प्राण की उत्पत्ति हुयी 3.3> ताम अहंकार और कालसे 05 तन्मात्र और 05 महाभूतोंकी उत्पत्ति हुयी 3.4 > 05 महाभूत + 05 तन्मात्र + 11 इन्द्रियाँ + बुद्धि + अहंकार + 03 गुणों से ब्रह्माण्ड और देहके पिंडका निर्माण हुआ 3.5 > ब्रह्माण्ड और जीव विज्ञानमें वायु और आकाश का योगदान महत्वपूर्ण है । प्राकृतिक प्रलयमें वायु पृथ्वीसे गंध लेकर उसे जलमें बदलती है । वायु जलसे उसका गुण रस लेकर अग्नि ( तेज ) में बदलती है । अन्धकार अग्नि से उसका रूप लेकर उसे आकाश में बदल देता

दुःख संयोग वियोगः योगः

●●दुःख संयोग वियोगः योगः●● गीतामें प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं --- " दुःख सयोग वियोगः इति योगः " ये श्री कृष्ण वही हैं जो 11 सालकी उम्र तक मथुरासे नन्द गाँव ,नन्द गाँवसे वृन्दावन और नन्द गाँव से बरसाना तक बासुरिकी धुन और रासको योग का माध्यम बनाया था और महाभारतके समय जब उनकी उम्र 80 साल से ऊपर की रही होगी तब कहते हैं ----- " सिद्धानां कपिलः मुनिः अहम् अस्मि " गीता 10.26 कपिल मुनि सत युगके प्रारंभमें स्वयाम्भुव मनुकी पुत्री देवहूति और कर्मद ऋषिके पुत्र रूप में श्री विष्णु भगवानके पांचवें अवतार के रूप में जन्म लिया था । कर्मद ऋषि विन्दुसरमें 10,000 साल की तपस्या किया था । विन्दुसर अहमदाबाद -उदयपुर मार्ग पर अहमदाबादसे 130 किलो मीटर दूर है जो कभीं तीन तरफसे सरस्वती नदीसे घिरा हुआ क्षेत्र होता था और जिसे सरस्वती जल देती थी ।प्रभु श्री कृष्ण 125 वर्ष की उम्र में यदु कुल का अंत करके अपनें परम धाम की यात्रा की थी । कपिल मुनि अपनी माँ की कैवल्य प्राप्ति की इच्छाको पूरा करनें हेतु उनको सांख्य योगका ज्ञान दिया था । यह योग सत युगके प्रारम्भ में पैदा हुआ और द्वापर के अंत

भागवतकी सृष्टि - प्रलय गणित

●● सृष्टि - प्रलय - सृष्टि ●● °° सन्दर्भ - भागवत :---- 2.5+3.5+3.6+3.25-3.27+11.24+11.25 * ब्रह्मा , मैत्रेय , कपिल और कृष्णके सांख्य तत्त्व ज्ञानका सार :---- ^ माया पर कालका प्रभाव हुआ फलस्वरुप ^ 03 अहंकार उपजे > सात्त्विक अहंकारसे कालके प्रभावसे --- मन + 10 इन्द्रियोंके अधिष्ठाता 10 देवता उपजे   > राजस अहँकारसे कालके प्रभावसे ----- 10 इन्द्रियाँ + बुद्धि + प्राण उपजे > तामस अहंकारसे कालके प्रभावसे ---- ° शब्द उपजा ° शब्दसे आकाश उपजा ° आकाशसे स्पर्श ° स्पर्शसे वायु ° वायुसे रूप ° रूपसे तेज ° तेजसे रस ° रससे जल ° जल से गंध ° गंधसे जल उपजा अर्थात 05 तन्मात्र और 05 बिषय उपजे और जब तत्त्व प्रलय होती है तब ----- * वायु पृथ्वीसे गंध छीन लेती है * पृथ्वी जलमें बदल जाती है # जलका रस वायु ले लेती है # जल अग्निमें बदल जाता है ¢ अँधकार अग्निसे रूप ले लेता है ¢ अग्नि वायुमें वदल जाती है ^ आकाश वायुसे स्पर्श छीनता है ^ वातु आकाशमें विलीन हो जाती है > काल आकाशसे शब्द ले लेता है > आकाश तामस अहंकारमें बदल जाता है * राजस अहंकारमें 10 इन्द्रियाँ , बुद्धि , प्राण विलीन