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गीता का विज्ञान

यहाँ आप गीता के निम्न सूत्रों को देखें --------- 7.8, 7.9, 9.19, 10.23, 15.12, 15.15 यह गीता के छः सूत्र कह रहे हैं .......प्रकाश , ऊष्मा , पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण तथा आकाश का शब्द धारण करनें की क्षमता परमात्मा हैं । हम यहाँ ऊपर की चार बातों को अलग-अलग देखनें जा रहे हैं --------- प्रकाश Max Plank, Einstein, Broglei, Schrodinger, Heisenberg, C.V. Raman , Sarfatti इन सब को नोबल पुरस्कार मिला है और इनके बिषय किसी न किसी प्रकार प्रकाश से सम्बंधित रहें हैं । आज के विज्ञान का मुख्य बिषय प्रकाश ही है । आइन्स्टाइन का सारा शोध इस पर आधारित है की प्रकाश की गति परम गति है । प्रकाश पिछले तीन सौ वर्षों से विज्ञान का केन्द्र बना हुआ है लेकिन अभी भी असली राज राज ही है तो फ़िर क्या समझा जाए ? जो तब भी राज था , अब भी राज है और आगे भी राज ही रहनें वाला दीखता हो तो उसे क्या कहना चाहिए ? उष्मा 19th C.C.E.,Max Plank आग देख कर heat quanta की बात कही और इनकी यह बात आगे चल कर Quantum Mechanics की बुनियाद बन गयी , और इस ऊष्मा - कण की खोज के आधार पर कई लोगों को नोबल - पुरष्कार मिला । पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण 1

चाह का फल

गीता कहता है ....चाह अज्ञान की जननी है ----श्लोक 7.20 गोदी का बच्चा माँ की गोदी छोड़ना नहीं चाहता और ज्यों- ज्यों बड़ा होता जाता है माँ से दूर भागनें लगता है ...ऐसा क्यों ? बच्चा गर्भ में माँ की संवेदनाओं को ग्रहण करता रहता है और भारतीय गर्भवती महिला का हर पल भय में गुजरता है ; कभीं वह इस बात से चिंतित रहती है की बेटा होगा या बेटी , कभी गर्भ में पल रहे शिशु की सुरक्षा को ले कर भय होता है और कभी उसे अपनी सुरक्षा का भय सताता है । घर का मोहौल , अपनीं एवं शिशु की सुरक्षा, गर्भवती महिला के लिए भय के कारण हैं । मनुष्य को गर्भ से मोह- भय एवं कामना का अनुभव मिला हुआ है । गीता कहता है ---कामना एवं मोह- भय अर्थात राजस-तामस गुण अज्ञान की जननी हैं [ गीता ॥ 7.20 , 18.72- 18.73 ], जिसको जो पार कर गया ...... वह सत्य को जान गया लेकिन ज़रा सोचना क्या हम उसको छोड़ना चाहते हैं जो हमारे मुट्ठी में बंद है ? भय साथ खोजती है और छोटा बच्चा जिसको गर्भ से भय मिला है उसको माँ के रूप में एक सुरक्षा -कवच दीखता है और वह माँ को छोड़ना नहीं चाहता । धीरे- धीरे वक्त गुजरता जाता है , बच्चा बड़ा हो जाता है , उसे संसार अ

गीता, अर्जुन एवं श्री कृष्ण - 2

परम श्री कृष्ण कहते हैं........ साधना में अब्यक्त भाव की स्थिति में अब्यक्त अक्षर की अनुभूति ही परम धाम है ---गीता 8.21 अब आप अपनी बुद्धि इस सूत्र पर कुछ देर लगाएं , ऐसा करनें से आप को जो मिलेगा वह आप का अपना होगा जिसको आप बाटना चाहेंगे पर बाट न पायेंगे । अब्यक्त भाव भावातीत का दूसरा नाम है और अक्षर वह है जो सनातन है , जो प्रकृति का नाभि केन्द्र [ nucleous ] है । परम पवित्र सनातन निर्विकार पुरूष से प्रकृति है , प्रकृति से प्रकृति में टाइम - स्पेस है , विकार शब्द मन-बुद्धि की उपज है और यह निर्विकार की सोच का बीज है , यदि विकार शब्द न हो तो निर्विकार की कल्पना कैसे होगी ? परम श्री कृष्ण कहते हैं [ गीता 4.3 , 9.28- 9.29 , 10.1 , 18.57 ]--तूं मेरा प्रिय है , इसलिए गीता -ज्ञान मैं तेरे को दे रहा हूँ , तूं अपनें को मुझे समर्पित कर दे , ऐसा करनें से तूं मुझे प्राप्त कर लेगा और यह भी कहते हैं -- मेरा कोई प्रिय- अप्रिय नहीं , मैं सब में सम भाव से हूँ । अब आप अर्जुन की नीति को देखें -------------- गीता -श्लोक 10.12--10.13 में अर्जुन कहते हैं ....आप सत- असत से परे परम अक्षर परम धाम परम ब्रह

गीता, अर्जुन एवं श्री कृष्ण

गीता के अर्जुन एक सामान्य सांसारिक ब्यक्ति हैं जो उसको छोड़ना नहीं चाहते जो उनको पकड़ रखा है । गीता के श्री कृष्ण गुणातीत स्थिर प्रज्ञ साँख्य- योगी हैं । श्री कृष्ण एवरेस्ट से बोलते हैं और उनको सुननें वाला नीचे तराई में है जिसके ऊपर- ऊपर से बातें निकल जा रही हैं । अर्जुन प्रारंभ में जिस युद्ध से वे भागना चाहते हैं उसे ब्यापार उद्ध कहते हैं [ देखिये गीता - 1.22 ] , श्री कृष्ण उस समय तो चुप रहते हैं लेकिन बाद में [ देखिये गीता - 2.31....2.33 ] इस उद्ध को धर्म - उद्ध कहते हैं । अर्जुन और श्री कृष्ण की सोचों में यह बुनियादी अन्तर है । अर्जुन शास्त्रों के आधार पर कहते हैं ---इस उद्ध से हम सब का जाति- धर्म एवं कुल - धर्म नष्ट होगा [ देखिये गीता- 1.40.....1.46 ] , श्री कृष्ण जाति -धर्म तथा कुल- धर्म के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहते बस इतना कहते हैं ---तूं पंडित शब्द का अर्थ तो जानता नहीं पर पंडितों जैसी बातें करता है [ देखिये गीता- 2.11 ] और बाद में स्व - धर्म एवं पर- धर्म की बात जरुर करते हैं [ देखिये गीता- 3.35 , 18.47 ], अब आप सोचिये की इस उद्ध में स्व कौन हैं ? और पर कौन हैं ? दोनों दल एक परि

गीतामें स्वर्ग,यज्ञ, कर्म सम्बन्ध

यहाँ हम एक जटिल बिषय पर गीता में झाकनें का प्रयत्न कर रहे हैं जिस के लिए निम्न श्लोकों को गहराई से देखना है , तो आइये पहले श्लोकों से परिचय करते हैं -------- 2.37- 2.38, 2.42- 2.46, 3.9- 3.15, 4.24- 4.33, 6.40- 6.45, 9.15, 9.20- 9.22, 17.11- 17.15 यहाँ गीता के अध्याय 2, 3, 4, 6, 9, तथा 17 के 38 श्लोकों में जो मिलता है वह कुछ इस प्रकार है ------- मनुष्य एक मात्र ऐसा जीव है जो प्रकृत से प्रकृत में है तो जरुर लेकिन अपनें को प्रकृत से अलग समझता है और यही कारण उसे सर्बोत्तम होनें पर भी सब से अधिक भयभीत रखता है । देखिये गीता-सूत्र 2.37- 2.38 श्री कृष्ण कहते हैं .....अर्जुन यदि तूं इस युद्ध में मारा जाता है तो तुझे स्वर्ग की प्राप्ति मिलेगी और यदि जीतता है तो राज्य का सुख मिलेगा , दोनों स्थितिओं में तेरा भला है अतः तूं युद्ध के लिए खडा हो जा । भोग का प्रलोभन दे कर युद्ध के लिए कह रहे हैं और आगे कहते हैं --यदि तूं सम- भाव में युद्ध करता है तो तेरे को कोई पाप भी नहीं लगेगा । अब आप श्री कृष्ण की आगे की बातों को देखिये ------ कर्म का होना मनुष्य के बस में नहीं है , मनुष्य गुणों के प्

अर्जुन का प्रश्न - 16

अर्जुन कहते हैं [ गीता श्लोक 18.1 ] , हे प्रभू! मैं संन्यास एवं त्याग को तत्त्व से जानना चाहता हूँ । अर्जुन का यह आखिरी प्रश्न है जिसके सम्बन्ध में श्री कृष्ण के 71 श्लोक [ आखिरी श्लोक 18.72] हैं , अर्जुन का एक और श्लोक 18.73 है तथा इस अध्याय के आखिरी पाँच श्लोक संजय के हैं। इस प्रश्न के सम्बन्ध में कुछ बातों को देख लेना जरुरी लग रहा है क्योंकि प्रश्नों के आधार पर गीता का समापन आ चुका है और अर्जुन अभी भी उसी मोह की स्थिति में दीखरहे हैं । बिषय, इन्द्रिय, मन, बुद्धि , भोग-तत्त्व [ आसक्ति , कामना , क्रोध, काम, लोभ, मोह , भय , अंहकार ] ,कर्म , कर्म -योग , ज्ञान , कर्म-संन्यास , बैराग्य , प्रकृति- पुरूष - संसार - समीकरण तथा आत्मा - परमात्मा को सुननें के बाद अर्जुन का यह प्रश्न अर्जुन की दयनीय मनो दशा की ओर इशारा करता है । अर्जुन अपनें प्रश्न दो एवं प्रश्न पाँच में कर्म- ज्ञान तथा कर्मयोग- कर्म संन्यास को जान चुके हैं और पुनः उन्हीं बातों को जाननें की इच्छा ब्यक्त कर रहें हैं - यह बात कुछ हलकी सी लगती है । यहाँ दूसरी बात देखनें की यह है --अध्याय तीन एवं अध्याय पाँच में कर्म , कर्मयोग, कर्

अर्जुन का प्रश्न - 15

अर्जुन पूछते हैं [ गीता श्लोक - 17.1 ]----हे प्रभू ! कृपया आप मुझे बताएं , शास्त्र बिधियों से हट कर परन्तु श्रद्घा पूर्बक पूजा करनें वालों की स्थिति सात्विक, राजस एवं तामस में से कौन सी होती है ? उत्तर में अध्याय - 17 के सभी अन्य 27 श्लोकों को देखना पडेगा। अब एक बार अर्जुन की स्थिति को देखते हैं; अभी तक गीता में श्री कृष्ण के 556 श्लोकों में से 458 श्लोकों को अर्जुन सुन चुके हैं लेकिन उनका मोह यथावत बना हुआ है । श्री कृष्ण सांख्य - योग के माध्यम से कर्म, कर्म -योग, ज्ञान , कर्म-संन्यास , भोग, काम, क्रोध , लोभ, मोह, भय , अंहकार , बैराग्य तथा आत्मा-परमात्मा एवं प्रकृति- पुरूष सम्बन्ध - रहस्यों को स्पष्ट कर चुके हैं लेकिन उनका यह प्रयाश असफल होता दिख रहा है । चाह के साथ राम से जुड़ना और काम से जुड़ना एक सा है --यह बात मैं नहीं गीता बता रहा है । चाह के साथ राम से जुड़ना नासूर है और काम से जुड़ना एक मामूली सा जख्म है जिसका उपचार सम्भव है , आप पौराणिक कथाओं को देखें जीतनें भी महान असुर / दानव/ राक्षस हुए हैं वे सभी मुनियों के श्राप के कारण हैं । हमारे मुनि लोग बात-बात पर श्राप देते हुए द