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गीता में दो पल - 11

योग क्या है ?   # गीता श्लोक : 6.23 # ** यहाँ प्रभु कह रहे हैं :--- " दुःख संयोग वियोगं , योग सज्ज्ञितम् " भावार्थ दुःख के कारणों से वियोग होना ,योग है । <> अब देखना होगा , दुःखके कारण क्या - क्या है...

गीता में दो पल - 10 (शब्द से सृष्टि )

तत्त्व - ज्ञान   " In the beginning was the word , and the word was with God , and the word was God . "   ~~ John 1:1 > First verse in the Gospel ~~  ** प्रारंभ में शब्द था ,   ** शब्द प्रभु के साथ था ,  ** शब्द ही प्रभु था ।  <> गोस्पेलके माध्यम से क्या कहना चाह रहे हैं ?   # अब देखते हैं भागवत क्या कह रहा है ?  ## भागवत में इस सम्बन्ध में ब्रह्मा , मैत्रेयऋषि , कपिल मुनि और प्रभु कृष्ण क्रमशः स्कन्ध - 2 , 3 , 3 और 11 में निम्न बात कहते हैं ।  ## : तीन गुणों की माया से काल के प्रभाव में पहले महत्तत्व की उत्पत्ति होती है ।  ** : महत्तत्त्व पर काल का प्रभाव तीन प्रकार के अहंकारों को पैदा करता है ।  # : सात्विक अहंकार से मन की उत्पत्ति है ।  * : राजस अहंकार से इन्द्रियाँ और बुद्धि उपजती हैं ।   ** : तामस अहंकार से शब्द की उत्पत्ति है   और :---  शब्द से अन्य चार तन्मात्र ( स्पर्श, रूप , रस और गंध ) एवं उनके अपनें -अपनें महाभूतों जैसे आकाश , वायु , तेज , जल और पृथ्वी की रचना होत...

गीता में दो पल - 9

* 24 तत्त्वों का बोध साकार उपासना है । 10 इन्द्रियाँ , 5 महाभूत , 5 तन्मात्र और 4 अन्तः करण ( मन + बुद्धि + चित्त + अहंकार ) - ये हैं साधना के 24 तत्त्व । * ऊपर ब्यक्त 24 तत्त्वों की साधन सगुन ब्रह्म ...

गीता में दो पल - 8

<> महतत्त्व क्या है ? भाग - 2 <>  ● पिछले अंक में महतत्त्व सम्बंधित कुछ बातों में मूल बात थी कि महतत्त्व प्रभु से प्रभु में एक ऐसी सनातन उर्जा का माध्यम है जो ब्रह्माण्ड के दृश्य वर्ग के होनें का मूल श्रोत है ।  <> अब आगे <>  ● भागवत : स्कन्ध - 2 , 3 और 11 ।  * भागवत के ऊपर ब्यक्त तीन स्कंधों में ब्रह्मा , मैत्रेय , कपिल मुनि और प्रभु कृष्ण के सृष्टि - विज्ञान को ब्यक्त किया गया है ।  * सांख्य -योग आधारित ब्रह्मा ,मैत्रेय , कपिल एवं कृष्ण द्वारा ब्यक्त सृष्टि - विज्ञान कहते हैं :---  <> प्रभु से प्रभु में तीन गुणोंका एक सनातन माध्यम है जिसे माया कहते हैं ।  <> प्रभुका एक रूप कालका भी है जो माया में गति एवं गतिके माध्यमसे परिवर्तन लाता रहता है ।  <> सृष्टि में सबसे पहले मूल तत्वों की उत्पत्ति होती है जिन्हें सर्ग कहते हैं ।  <> सर्गों से ब्रह्मा सृष्टि का विस्तार करते हैं जिसे विसर्ग  कहते हैं ।  <> सर्गों की उत्पत्ति ही मूल तत्वों की उत्पत्ति है <>  ● माया पर निरंतर ...

गीता में दो पल -7

प्रभु से प्रभु में माया है जो प्रभु की ही एक उर्जा का माध्यम है और जिससे एवं जिसमें वे सभीं मूल तत्त्व है जिनसे दृश्य वर्ग का होना , रहना और समाप्त होना का चक्र चलता रहता है। 1-  ...

जीव कण क्या है ?

# श्रीमद्भागवद्गीता , श्रीमद्भागत पुराण तथा ब्रह्माण्ड पुराणके आधार पर कुछ ऐसी बातें यहाँ दी जा रही हैं जिनका सम्बन्ध जीव और पदार्थ निर्माण से है । आज हर वैज्ञानिक चाहे वह भौतिक शास्त्री हो , चाहे ,रसायन शास्त्री हो या कोई अन्य ,सभीं जीव निर्माणकी सोच पर केन्द्रित हैं ।  # प्रो. एल्बर्ट आइन्स्टाइन 1995 - 1902 के मध्य जब गणित - कोस्मोलोजी को एक नयी दिशा देनें में केन्द्रित थे तब उनको कहीं से गीता मिल गया और जब उनकी नज़र अध्याय - 7,8,13 और 14 के कुछ श्लोकों पर केन्द्रित हुयी तब उनसे रहा न गया और बोल उठे :----  " When I read Bhagavad Gita and reflect about how God created this universe , everything else seems so superfluous ." # भागवत में कृष्ण ,ब्रह्मा , मैत्रेय और कपिल के सृष्टि विज्ञान दिए गए हैं । इनके सृष्टि विज्ञान में कहा गया है :---  " 1- प्रभु से प्रभु में उनकी तीन गुणों वाली माया एक माध्यम है जो सनातन एवं सीमा रहित है और जो हृदय की भाँति धड़क ( pulsate ) रही है । इसकी धड़कन कालके कारण है ; काल अर्थात समय ( Time ) जो परमात्माका एक निर्मल क्वान्टा है । माया अर्थात spa...

गीता में दो पल - 6

<> बुद्धि कैसे स्थिर होती है ? भाग - 1 <>  ● देखिये गीता श्लोक : 2.64 + 2.65 ●  1- श्लोक : 2.64 > " जिसकी इन्द्रियाँ राग - द्वेष अप्रभावित रहती हुयी बिषयों में विचरती रहती हैं , वह नियोजित अन्तः अन्तः करण वाला प्रभु प्रसाद प्राप्त करता है ।"   # अन्तः करण क्या है , और प्रसाद क्या है ? यहाँ अन्तः करण के लिए देखें :--   * भागवत : 3.26.14 * और प्रसादके लिए गीता श्लोक : 2.65 ।  भागवत कहता है , " मन ,बुद्धि ,अहंकार और चित्तको मिला कर अन्तः करण बनता है ।" चित्त क्या है ? मन की वह निर्मल झिल्ली जहाँ गुणोंका प्रभाव नहीं रहता ।मनुष्यके देह में गुणों से निर्मित तत्त्वों में मात्र मन एक ऐसा तत्त्व है जो सात्विक गुण से निर्मित  है ।  2- गीता श्लोक : 2.65 > " प्रभु प्रसाद से मनुष्य दुःख से अछूता रहता है और ऐसे प्रसन्न चित्त ब्यक्ति की बुद्धि स्थिर रहती है । "   <> स्थिर बुद्धि वाला ब्यक्ति स्थिर मन वाला भी होता है ।  <> स्थिर बुद्धि दुखों से दूर रखती है ।  <> स्थिर बुद्धि वाला प्रभु केन्द्रित रहते ...