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Showing posts from 2015
गीता में दो पल - 18 - दशांगुल न्याय क्या है ?
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# अहँकारके अस्तित्वको दशांगुल न्याय में देखते हैं । * दशांगुल न्याय कहता है कि पृथ्वीके चारों तरफ ब्रह्माण्डके 07 आवरण निम्न प्रकार से हैं । * 1- पृथ्वी चारों तरफ से पानी घिरी है और पानी पृथ्वी से 10 गूना है । *2- पानीके चारों तरफ है अग्नि जी पानी से 10 गूना है । * 3 - अग्नि अपनें से 10 गूँने वायु से घिरा हुआ है। * 4 - वायु अपनेंसे 10 गूँने आकाशसे घिरी है। <> 5- आकाश चारों तरफ से अपनें से 10 गूँनें अहँकार आवरणसे घिरा है । ♂ 6 - अहँकार से 20 गूना है महत्तत्त्व का आवरण । ♀7 - महत्तत्त्वसे 10गूना है अब्यक्तका आवरण । ** अब्यक्तको ही मूल प्रकृति कहते हैं । ## यहाँ से अहँकारके सम्बन्ध में सोचा जा सकता है । ~~~ॐ~~~
गीता में दो पल - 17 अहंकार - 1
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# अहंकार क्या है ? # *भागवत : 3.26 में कपिल मुनि द्वारा दी गयी अंतः करणकी परिभाषाको हम पहले देख चुके हैं । कपिल कहते हैं -- बुद्धि ,अहंकार , मन और चित्तको मिला कर अतः करण बनता है । * अंतः करणके एक तत्त्व बुद्धिको हम गीता के माध्यम से देख चुके हैं और अब देखते हैं दूसरे तत्त्व अहंकारको । <> अहंकारके प्रभावमें मैं और मेराका भाव हर पल मनुष्यमें गूंजता रहता है । <>अहंकारको समझनेंके लिए यहाँ हम दो सन्दर्भोंको देखनें जा रहे हैं -- <> 1 : भागवत में ब्रह्मा ,मैत्रेय ,कपिल और प्रभु कृष्णके तत्त्व -ज्ञान और --- <> 2 : दशांगुल न्यायके माध्यमसे अहंकरके आकरको भी समझते हैं । <> 1: भागवत : 2.4+2.5+3.5+4.6+3.26+11.24 में 230 श्लोकों में ब्रह्मा ,मैत्रेय , कपिल और प्रभु कृष्ण के तत्व -ज्ञान से हमें निम्न सार मिलता है । 1.1: माया पर कालका प्रभाव महत्तत्त्व की उत्पत्ति करता है । 1.2: महत्तत्त्व पर काल का प्रभाव तीन प्रकार के अहंकारों की उत्पत्ति करता है । 1.3: सात्विक अहंकार से मन ,राजसअहंकार से प्राण , बुद्धि और इन्द्रियों...
गीता में दो पल - 16 (अन्तः करण - 1 )
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* गीता श्लोक : 6.23 में योगकी परिभाषा - दुःख संयोग वियोगः के रूप में और पतंजलि योग सूत्र में चित्त बृत्ति निरोधः केंरूप में हमनें गीता दो पल - 14 और 15 में देखी । * चित्त का हमारे सुख - दुःख की अनुभूतियों से गहरा सम्बन्ध है । आइये ! चलते हैं ,चित्त के रहस्य को बुद्धि स्तर पर समझनें । * कपिल मुनि ,कर्मद ऋषिके पुत्र अपनीं माँ स्वायम्भुव मनु ( पहले मनु : एक कल्प में 14 मनु होते हैं । इस समय इस कल्पके सातवें मनु श्राद्ध देव जी हैं ) की पुत्री देवहूतिको मोक्ष प्राप्ति हेतु सांख्य -दर्शन में कह रहे हैं :--- भागवत : 3.26.14 : बुद्धि ,अहंकार ,मन और चित्त - इन चार तत्वों से अन्तः करण है । # अन्तः करणको समझनें हेतु हमें इन चार तत्वोंको समझाना होगा लेकिन इसके पहले हम अन्तः करणकी बृत्तियाँ को देखते हैं । #* भागवत : 3.26 : कपिल मुनि कहते हैं :--- संकल्प , निश्चय , चिंता और अभिमान ,ये हैं अन्तः करणकी बृत्तियाँ । ** अब देखते हैं अन्तः करणके पहले तत्त्व , बुद्धिको । * बुद्धिके लिए गीता : 2.41+2.66+7.10 + 18.29 - 18.35 श्लोकोंको देखें । * नि...
गीता में दो पल - 15
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गीतामें दो पल -14 में योगकी दो परिभाषाएं देखनेंको मिली ; एक गीता - 6.23 में कृष्णकी जो कहता है ," दुःख संयोगवियोगः योगः " और दूसरी परिभाषा थी पतंजलि - योग सूत्रकी जहाँ पतंजलि कहते हैं ," चित्त बृत्ति निरोधः योगः "। * आइये ! देखते हैं चित्त और दुःखके सम्बन्ध को :------ # दो शब्द दिखते हैं - मन और चित्त । बहुत भ्रम है इन दो शब्दों में । ज्यादातर लोग इन दो शब्दोंको एक दूसरेके पर्यायवाची रूपमें प्रयोग करते हैं । * भागवतमें अंतः करणके चार तत्त्व दिए गए हैं - मन , बुद्धि ,अहंकार और चित्त । # भागवत : 10.6.42> यहाँ शुकदेव जी कहते हैं , पञ्च महा भूत + पञ्च तन्मात्र + 10इन्द्रियों + पञ्च प्राण +मन और बुद्बिका केंद्र है , चित्त । पांच प्रकार की वायुओं - प्राण वायु + अपान वायु+ ब्यान वायु - उदान वायु और समान वायुको प्राण कहते है । << कुछ और जानकारी अगले अंक में >> ~~~ ॐ ~~~