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Showing posts from April, 2014

गीता - अमृत ( दो शब्द )

दो शब्द :  जब - जब गीताके सम्बन्धमें कुछ कहना चाहता हूँ , ऐसा लगनें लगता है जैसे कोई मुझे रोक रहा हो और यह कह रहा हो कि  मुर्ख ! यह क्या करनें जा रहे हो ?   * क्या जो तुम लोगों को बतानें की तैयारी कर रहे हो , उसे स्वयं ठीक -ठीक समझ पाए हो ?  * क्या तुम्हें यह पक्का यकीन है कि तुम जिस बीज को बोना चाह रहे हो वह पूरी तरह से पक चूका है ?  * इस प्रकार कुछ और मौलिक प्रश्न मेरे मन -बुद्धि पर डूब घास की तरह छा जाते है और मैं इस सम्बन्ध में आगे नहीं चल पाता लेकिन आज हिम्मत करके दो -एक कदम चलनें की कोशिश में हूँ और उम्मीद है कि इस मूक गीता -यात्रा में आप मेरे संग प्रभु की उर्जा के रूप में रहेंगे । आइये ! अब हम और आप गीताकी इस परम शून्यताकी यात्रामें पहला कदम उठाते हैं और यदि यह पहला कदम ठीक रहा तो अगले कदम स्वतः उठते चले जायेंगे ।  <> गीतामें सांख्य योगके माध्यमसे कर्म-योग की जो बातें प्रभु अर्जुन को बताते हैं , उन्हें जीवनमें अभ्यास करनेंसे सत्यका स्पर्श होता है लेकिन तर्कके आधार पर उन पर सोचना अज्ञानके अन्धकार में पहुँचाता है ।  <> गीता जैसा...

गीता एक सन्देश है

^ भागवत में ( भागवत : 1.4 ) कहा गया है कि एक दिन व्यास जी सरस्वती के तट पर स्थित अपनें आश्रम पर सुबह -सुबह किसी गहरी चिंता में डूबे हुए थे । नारदजीका आगमन हुआ और नारद जी व्यास जी को सलाह ...

गीता कहता है

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क्या करोगे जान कर /

<> यही रहस्य है <>  * जीवनको समझते -समझते जीवनका अंत आजाता है और हमें जीवनका स्वाद तो नहीं मिल पाता ,पर जो हमारे साथ जाती है वह है घोर अतृप्तता । गीता में प्रभु कृष्ण कहते हैं , देह त्याग कर जब आत्मा चलता है तब उसके साथ मन - इन्द्रियाँ भी होती हैं । भागवत (स्कन्ध - 2,3,11) कहता है , सात्विक अहंकार कालके प्रभाव में मन की उत्पत्ति करता है और 10 इन्द्रियाँ राजस अहंकार एवं कालके सहयोग से उत्पन्न होती हैं ।मनुष्य के देह में मन की स्थिति वैसी होती है जैसे हवाई जहाज में ब्लैक बॉक्स की स्थिति होती है । सृष्टि प्रारम्भ से आजतक का इन्द्रियों का अनुभव मनमें संचित होता है और सघन अतृप्त अनुभव मनुष्य के अगले योनिको निर्धारित करता है ।  * पढ़ लेंगे तब , कारोबार सेट हो जाएगा तब , बच्चे हो जायेंगे तब , बच्चे बड़े होजाएंगे तब , बच्चों का ब्याह हो जाएगा तब ,इस तब के इन्तजार में जीवन नौका कब और कहाँ अपनीं परम यात्रा पर निकल जाती है ,हमें भनक तक नहीं मिल पाती और हम उसकी यात्रा के मूक दर्शक बन जाते हैं । मन इन्द्रियों के साथ आत्मा यात्रा पर होता है ,हमारा प्यारा शरीर जिसे हम कौन सा सुख न...

गीता तत्त्व भाग -5

●● पढो और मनन करो ●● 1- प्रभु ! किसी की नज़र आप पर टिके या न टिके पर आपकी नज़र सब पर समभाव से होती है । 2-सत्यकी खोज इन्द्रियोंसे प्रारम्भ होती है पर इन्द्रियों तक सीमित नहीं । 3- जिस घड...