Posts

Showing posts from November, 2013

मूर्ति एक माध्यम

● मुर्तिके माध्यमसे ...  <> पिछले अंकमें आठ प्रकारकी मूर्तियोंको देखा गया जिनको भागवत दो भागों में देखता है ; एक चल मूर्ति होती है और दूसरी अचल ।  <> मुर्तिके माध्यमसे साधन करना अति सरल है और अति कठिन भी । साधना तन - मन का वह मार्ग है जो ब्रह्मके साथ एकत्व स्थापित करता है । ब्रह्मसे एकत्व स्थापित होना समाधि  है ,समाधि इन्द्रियों और मन -बुद्धिमें बह रही उर्जाके रुखको बदलती है। समाधि साधनाका फल है जहाँ साधक साकारका द्रष्टा - साक्षी होता है और इन्द्रियों ,मन -बुद्धिमें बह रही उर्जा निर्विकार होती है । समाधि वह द्वार है जिसके दरवाजे तक साकार की पहुँच होती है और जिसके अन्दर निराकार की अनुभूति । समाधिकी लोगोंनें परिभाषा बुद्धि स्तर पर बनाया है लेकिन उससे समाधि स्पष्ट नहीं होती । क्या विकल्प और क्या निर्विकल्प समाधि ,समाधि तो वह घडी है जब परम का द्वार खुलता है , साधक द्वार खुलना देखता है लेकिन क्षण भरमें वह समाधि में ऐसे खीच जाता है जैसे कोई ब्लैक होल किसी कोस्मिक बॉडी को खीच लेता है ।  * समाधिकी अनुभूति अब्यक्तातीत है उसे कोई आज तक ब्यक्त नहीं कर सके और जो...

मूर्तियोंके प्रकार

सन्दर्भ : भागवत : 11.27+12.20  <> मूर्तियाँ पूजा करनें की दृष्टि से 08 प्रकार की कही  गयी हैं :----- * पत्थर की * लकड़ी की * धातु की * मिटटी या चन्दन की * चित्रमयी * बालू या रेत की * मणि की * मन मयी ।  # इन मूर्तियों को दो भागों में विभक्त करते हैं ।  1- चल मूर्ति 2- अचल मूर्ति  1- चल मूर्ति :  ऐसी मूर्तियोंका प्रतिदिन आवाहन - विसर्जन करनें और न करनेंका विकल्प है ।  2- अचल मूर्ति : अचल मूर्तियोंका प्रति दिन आवाहन - विसर्जन नहीं करना  चाहिए ।  # बालू या रेतकी मूर्तिका प्रति दिन आवाहन - विसर्जन करना अनिवार्य है ।  # मिटटी , चन्दन , चित्र मयी मूर्तियोंको स्नान करना वर्जित है केवल मार्जन करना चाहिए ।  ~~~ ॐ ~~~

ब्रह्म और माया

● गीता ज्ञान-1● * पूरा ब्रह्माण्ड जो सीमारहित है जब रिक्त गो जाता है अर्थात जब इसमें जोई दृश्य नहीं रहता तब यह ब्रह्म होता है । * ब्रह्मसे ब्रह्ममें तीन गुणोंका एक माध्यम विकस...