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सांख्य में कार्य ,कारण और करण भाग - 1

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  सांख्य आधारित कार्य - कारण और करण 【 भाग - 01 】 💐 सृष्टि - रहस्य में कार्य - कारण बाद सांख्य दर्शन का एक अहम बिषय है । आइये ! हम मिलकर निम्न स्लाइड जे आधार पर जो सांख्य आधारित है , देखते और समझते हैं ⬇️

सांख्यकारिका 61 - 72 तक का सार तत्त्व

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  सांख्यकारिका : 61 - 72 तक के सार तत्त्व सांख्य दर्शन  की 72 कारिकाओं  का हिंदी भाषान्तर यहाँ पूर्ण हो रहा है । टेबुलर फॉर्म में इन कारिकाओं के सार तत्त्वों को देने का मात्र  एक प्रयोजन यह है कि इन कारिकाओं को स्मृति नें थीक - थीक बैठा दी जाय जिससे आगे पतंजलि योग दर्शन के 195 सूत्रों को समझने में सरलता रहे ।  # ध्यान रहे कि जबतक सांख्य कारिकाओं की सुलझी समझ न होगी , तबतक पतंजलि योग सूत्रों की स्पष्ट समझ नहीं हो सकती । सांख्य - पतंजलि की स्पष्टता श्रीमद्भगवद्गीता को समझने में सरल बनाती है । ★ हम क्यों दर्शनों की  गंगा में स्नान करना चाहते हैं ? क्या कभीं आप इस प्रश्न को समझना चाहा है ? यदि नहीं तो भारी भूल कर रहे हैं ।  ।। ॐ ।।

सांख्यकारिका 69 , 70 , 71 , 72

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  सांख्यकारिका : 69 , 70 , 71 , 72 🐧ये कारिकाएँ सांख्यकारिका संग्रह के उपसंहार रूप में दी गयी  है  । इन कारिकाओं  के माध्यम से  सांख्य  दर्शन के इतिहास की झलक मिलती है । 🐦 इस प्रकार हम आज सांख्य कारिका बिषय के आखिरी सोपान पर हैं ।  🦃 कल के अंक में टेबुलर फॉर्म में  कारिका 61 - 72 तक के सार को दिया जाएगा एक स्मृति चिन्ह के रूप में । ।।ॐ ।।

सांख्यकारिका 66 , 67 , 68

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  सांख्यकारिका : 66 , 67 , 68 ईश्वर कृष्ण रचित सांख्य दर्शन से सम्बंधित प्रकृति - पुरुष रहस्य को स्पष्ट करने वाली कारिका : 1 से 68 तक की शृंखला  का यह आखिरी अंक है । इसके बाद कारिका : 69 - कारिका : 72 तक के अंतर्गत सांख्य दर्शन के इतिहास के सम्बन्ध में बताया गया है । 💐 बुद्धि योग आधारित 68 संख्यकारिकाओं के अंतिम अंक को ध्यान से समझना चाहिए लेकिन यह तभी संभव हो सकता है जब पिछली कारिकाओं को ठीक से समझा गया हो । अब उतरते हैं कारिका : 66 , 67 और 68 में ⬇️ ।। ॐ ।।

सांख्यकारिका 64 - 65

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  सांख्यकारिका 64 - 65 प्रकृति का स्व बोध यहाँ इन दो कारिकाओं को दो भागों में स्पष्ट करने का यत्न किया गया है जिससे इनकी गूढ़ता को सरल बनाया जा सके । ● सांख्य कारिकाओं से सम्बंधित प्रश्न सभीं राष्ट्रिय परीक्षाओं जैसे IAS /PCS की परीक्षाएं । ★अब हम सांख्य दर्शन की कारिकाओं के आखिरी चरण में प्रवेश कर चूजे हैं अतः जबतक पिछली कारिकाओं से मित्रता नहीं बनी होगी तबतक आखिरी कारिकाओं को समझना कठिन होगा ही। ◆ईश्वरकृष्ण रचित मात्र 72 कारिकाएँ सांख्य दर्शन के तत्त्वों को प्रकाशित कर रही हैं अतः अब केवल 07 और कारिकाएँ शेष हैं। //ॐ //

सांख्यकारिका - 63

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  सांख्यकारिका : 63 , भाग - 1 और भाग - 2 ◆  यहाँ हम देख रहे हैं , निम्न को ⬇️ 1 - प्रकृति स्वयं को 08 भावों में से 07 से स्वयं को बाध लेती है लेकिन जब उसे विवेक ( 08 वां भाव - ज्ञान ) की सुगंध मिलती है तब मुक्त हो कर अपने मूल स्वरूप अर्थात साम्यावस्था में आ जाती है । 2 - 04 प्रकार की सम्प्रज्ञात समाधि में से प्रथम तीन ( वितर्क , विचार , आनंद ) की सिद्धि से प्रकृतिलय और अस्मिता सिद्धि से विदेहलय की स्थितियां मिलती हैं। <> अब देखें दो स्लाइड्स को ⬇️

सांख्यकारिका 61 - 62

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  सांख्यकारिका : 61 - 62 🐧  इन दो  कारिकाओं का सम्बन्ध प्रकृति और पुरुष के स्वभाव से है । प्रकृति पुरुष के लिए निःस्वार्थ भाव से पुरुष ऊर्जा के प्रभाव में कार्य करती है ।  🐦 जब प्रकृति को ऐसा आभाष होने लगता है कि पुरुष उसे देख लिया है तब वह अपनें मूल स्वरुप अर्थात  तीन गुणों की साम्यावस्था की स्थिति में लौट आती है और पुनः पुरुष से आकर्षित नहीं होती । 🦃 पुरुष न आजाद है और न पराश्रित और वह संसरण भी नहीं करता । प्रकृति 23 तत्त्वों से स्वयं को बाध कर रखती है और संसरण भी करती है  । ◆ प्रकृति के अपने 23 तत्त्व ( बुद्धि , अहँकार , 11 इन्द्रियाँ , पञ्च तन्मात्र और पञ्च महाभूत ) उसके आश्रय हैं और यह एक जन्म से दूसरे जन्म में आवागमन भी करती है जिसे संसरण कहते हैं। ।। ॐ ।।