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Showing posts from September, 2013

गीता और विज्ञान

● अपनीं स्थितिको समझो ●  " Human being is a part of the universe limited in time - space ."  Prof. Albert Einstein 1879 - 1955  प्रो. आइन्स्टीन अपना सारा जीवन लगा दिया प्रकृतिके उस नियमको समझनें में जो नियम इस ब्रह्माण्डको चला रहा है , आइन्स्टीनका वह नियम ही भगवान है । आइन्स्टीनके जीवनके 55साल (190 1-1955 तक) उस नियमकी खोजमें गुजरे लेकिन वह नियम न मिल सका। बुद्ध और महावीर 50 साल तक उस नियमको व्यक्त करनेंमें लगाये लेकिन ब्यक्त न कर पाए , तो आइये देखते हैं गीता और श्रीमद्भागवत पुराणके आधार पर उस परम सनातन नियम को ।  सन्दर्भ : भागवत सूत्र : 1.13+ 3 10+3.25+6.1 और गीता अध्याय - 13+15  ** काल ( time )के प्रभावमें प्राणसे भी वियोग होजाता है ।काल वह चक्र है जो प्रकृति की सूचनाओं को बनाता है , उनको अपनी ओर खीचता रहता है और अंततः उनको अपनें में समा लेता है । कालको समझनें केलिए विषयोंमें निरंतर हो रहे परिवर्तनको देखा जा सकता है ।  ** प्रभुसे प्रभुमें तीन गुणोंका एक माध्यम है जिसे माया  कहते हैं : इस बात को समझते हैं ।विज्ञान में टाइम -स्पेस (time -space ) है ...

राग - द्वेष

°° गीता - 3.34 °° इन्द्रियस्य इन्द्रियस्य अर्थे रागद्वेषौ ब्यवस्थितौ । तयो : न वशं आगच्छेत् तौ हि अस्य परिपन्थनौ ।। " इन्द्रिय - बिषय राग - द्वेषकी उर्जासे परिपूर्ण हैं , इनका सम्...

मोह वैराज्ञ

● मोह - वैराज्ञ ● °° गीता - 2.52 °° यदा ते मोहकलिलं बुद्धिः ब्यतितरिष्यति। तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतब्यस्य श्रुतस्य च ।। " जब तेरी बुद्धि मोह - दलदलसे बाहर होगी तब तुम सुनें हुए ...

गीता श्लोक - 6.1

●● गीता श्लोक - 6.1 ●● अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः सः संन्यासी च योगिः ................ " कर्मफल आश्रय रहित कर्म जो कर रहा है वह संन्यासी और योगी है " ** अर्जुन अध्याय - 5 के प्रारम्भ में...