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गीता सांसारिक रिक्तता की दवा है

गीता को यदि महाभारत प्रसंग से दूर रखा गया होता तो क्या होता ? गीता यदि भक्ति मार्गियों के हाँथ न आया होता तो क्या होता ? गीता के ऊपर जो लोग लिखे हैं या जो लिख रहे हैं वे गीता - सूत्रों को पौराणिक बातों के सन्दर्भ में क्यों देखते हैं ? गीता में सात सौ श्लोक हैं जिनमें से यदि लगभग 60 श्लोकों को निकाल दिया जाये तो कोई यह नहीं कह सकता कि गीता का जन्म युद्ध – क्षेत्र में दो सेनाओं के मध्य हुआ होगा ? गीता के सांख्य – योगी ब्रह्म के आधार परम अक्षर श्री कृष्ण को कैसे कोई माखन चोर या गोपियों के साथी के रूप में देख सकता है ? गीता बताता है ------- आसक्ति क्या है ? कामना क्या है ? क्रोध क्या है ? अहँकार क्या है ? मोह क्या है ? काम क्या है ? और इन सब में आपसी सम्बन्ध क्या है ? अभीं जिन तत्त्वों को बताया गया वे तत्त्व हैं भोग तत्त्व जो अस्थिर होते हैं और वायु की भांति मन में इनका आवागमन होता रहता है / संसार और मनुष्य का आपसी सम्बन्ध भोग तत्त्वों के माध्यम से है और मनुष्य की चेतना इंद्रियों के माध्यम से संसार से इन तत्त्वों के माध्यम से जुडी हु...

गीता को ढोना अति सरल पर -----

गीता को ढोना तो अति सरल है लेकिन गीता में उतरना उतना ही कठिन गीता में वे उतरते हैं जिनके माद एक मजबूत ह्रदय है गीता में वे उतरते हैं जिनकी आस्था अडिग है गीता उनका साथ देता है जो अपनें को देखना चाहते हैं गीता एक दर्पण है जिस पर आप स्वयं की स्थिति को देख सकते हैं गीता - यात्रा में बिषय से वैराज्ञ से ठीक पहले तक की यात्रा भोग की यात्रा है जहाँ ----- भोग तत्त्वों के रस को चखा जाता है … ... भोग तत्त्वों के रस को परखा जाता है … .. भोग तत्त्वों के प्रति बोध बनाना होता है … . और यह बोध ही आगे चल कर वैराज्ञ में ज्ञान का रूप ले लेता है , जहाँ … .. आसक्ति , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य एवं अहँकार का द्रष्टा बना हुआ वैरागी … .. अपनें कर्म में अकर्म देखता है ----- अपनें अकर्म में कर्म देखता है ----- संसार में प्रकृति - पुरुष के खेल को देखता है … . और … .. वह योगी आत्मा से आत्मा तृप्त रहता हुआ परम गति की ओर चलता रहता है // ==== ओम् =======