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Showing posts from August, 2009

गीता बुद्धि योग श्रोत है

गीता हर एक हिंदू परिवार में मिलता है , लोग कभीं-कभी पढ़ते भी हैं लेकिन उनको क्या मिलता है?---यह सोच का बिषय है । गीता में परम श्री कृष्ण कहते हैं---योग सिद्धि पर ज्ञान मिलता है , ज्ञान के माध्यम से आत्मा का बोध होता है । योग-सिद्धि उसको मिलती है जो समत्वयोगी होता है अर्थात जिसके उपर गुणों के तत्वों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता जो भोग संसार में कमलवत होता है लेकिन अर्जुन को जो पूरी तरहसे मोह में डूबा है उसकों सबसे पहले आत्मा के सम्बन्ध में क्यों बताते हैं ? आत्मा अब्यक्त है , अशोच्य है और मन-बुद्धि के परे की अनुभूति है फ़िर अर्जुन जो तामस गुन के मुख्य तत्व मोह में डूबे हैं , आत्मा को कैसे समझ सकते है ? गीता के आखिरी अध्याय का पहला श्लोक अर्जुन के प्रश्न के रूप में है अर्थात गीता समाप्त होरहा है लेकिन अभी भी अर्जुन प्रश्न रहित नहीं हैं । अर्जुन के उपर यदि गीता का असर होता तो उनको प्रश्न रहित हो जाना था लेकिन ऐसा हुआ नही । गीता में गीता श्लोक 18.73 से पहले कहीं भी अर्जुन मोह रहित नहीं दीखते फ़िर कैसे एकाएक कहते हैं की मेरा अज्ञान- जनित मोह समाप्त होगया है , मैं अपनी स्मृति प्राप्त करली है और...

कामना और गुण

कामना राजस गुण का तत्व है और राजस गुण परम-राह का सबसे मजबूत अवरोध है[ गीता-6।27] दो साधू नदी किनारे बैठेaataahcnuh थे उनमें से एक नें एक काला कम्बल अपनी तरफ़ आते देखा और ज्योंही कम्बल नजदीक आया उसनें उसे झटसे पकड़ लिया। दूसरा साधू सारी घटनाओं को देख रहा था। कुछ समय गुजर गया पर उसका साथी कम्बल को पकडे नदी में धुका रहा तब उसनें बोला भाई! जा पकड़ ही लिया है तो उसे बाहर क्यों नहीं खीचलेता क्यों नदीमें झुका पडा है? दोस्त बोला मैं क्या करू? यह तो हमें अपनी ओरखीच रहा है बात कुछ समझ के बाहर की दिख रही थी, वास्तव में वह कम्बल नहीं रीछ था। कामना कम्बल की तरह दिखती तो है लेकिन होती रीछ जैसी है , कामना कही से आती नही , यह बिषय - इन्द्रिय संयोग से उपजी आशक्ति ऊर्जा से उत्पन्न होती है और क्रोध इसका रूपांतरण है [गीता- 2।62-2।63 ] गीता गुण - समीकरण को जिसनें समझ लिया वह भोग तत्वों के सम्मोहन से बच सकता है और जब ऐसा संभव होता है तब समझो भाग्यशाली हो , तुम में परमात्मा -किरण पड़ चुकी है। गीता-सूत्र 14 . 10 को आप ठीक से समझो, सूत्र कहता है ----- मनुष्य में तीन गुण हर पल होते हैं , उनकी मात्राएँ अलग अलग...