तंत्र और योग --2

सराह , मारपा , तिलोपा , नागार्जुन,मिलरेपा, करमापा जैसे अनेक साधकों को तंत्र से वह मिला जो -----
आदि गुरु शंकराचार्य , परमहंस रामकृष्ण , कबीर आदि को मिला ।

रात-दिन,सुख-दुःख,बुरा-भला,विकार-निर्विकार,हाँ-ना पर जिनकी नजर टिकी हुयी है उनसे शून्यता कोसो दूर रहती है और शून्यता तंत्र का फल है ।
अब आप इस बात पर सोचें ---
रात का समापन हो रहा है और दिन आनें को तैयार है ....
दिन का समापन हो रहा है और रात आनें को तैयार है ...
इन दोनों अवस्थाओं के मध्य में जो है वह क्या है ?----यह बात तंत्र बताता ही नहीं दिखाता भी है ।
एक शब्द है - संध्या जिसको ध्यान एवं योग के लिये उत्तम माना गया है और जो ऊपर बतायी गयी दो बातों का मध्य है । गीता जिसको समभाव कहता है तंत्र उसको शून्यता कहता है जो अद्वैत्य है ।
जिस बुद्धि से यह प्रश्न उठाता है --परमात्मा है या नहीं है ? उस बुद्धि में इस प्रश्न का उत्तर नहीं समा सकता,
प्रश्न के समय जो बुद्धि होती है उसका नाम गीता में अनिश्चयात्मिका बुद्धि है और जिस बुद्धि से उसका उत्तर ग्रहण किया जाता है, उसको गीता निश्चयात्मिका बुद्धि कहता है । महान वैज्ञानिक एल्बर्ट आइन्स्टाइन कहते हैं -----जो बुद्धि प्रश्न उठाती है उस बुद्धि में उस प्रश्न का उत्तर समझनें की ऊर्जा नहीं होती ।

गीता कहता है ----
जिस काल में परिधि से केंद्र की ओर बहनें वाली उर्जा निर्विकार हो जाती है उस काल में वह ब्यक्ति परमात्मा मय होता है और तंत्र इस स्थिति को परम शून्यता कहता है ।
गीता की साधना हो , बुद्ध का ध्यान हो , महाबीर का तप हो या नानक-मीरा की भक्ति हो इन सब से जो मिलता है वह एक है जिसको ब्यक्त करना संभव नहीं ।
तंत्र को बिना समझे उस से दूर रहना उचित नहीं , तंत्र को काम से जोड़ कर देखना भी उचित नहीं है , तंत्र
तन से मन को समझनें का विज्ञानं है जो मनुष्य की ऊर्जा को निर्विकार बनाता है और जब ऐसा होता है तब
सिद्धि मिलती है । सिद्धि प्रभु के द्वार को खोलती है ।

====ॐ====

Comments

Popular posts from this blog

क्या सिद्ध योगी को खोजना पड़ता है ?

पराभक्ति एक माध्यम है

मन मित्र एवं शत्रु दोनों है