गंगा जल से समाधि तक -----1
भोग से योग की यह आप की यात्रा मंगलमय रहे ।
गीता में परम श्री कृष्ण कहते हैं --------
नदियों में गंगा [ गीता-10.31 ], स्थिर रहनें वालो में हिमालय [गीता-10.25 ], जलाशयों में समुद्र
[गीता - 10.24] , छंदों में गायत्री [गीता-10.35] और वेदों में एक ओंकार [ॐ], मैं हूँ ।
सागर से सागर तक की यह गीता-यात्रा आप जहाँ से चाहें वहाँ से प्रारम्भ कर सकते हैं ।
भोग से योग की इस यात्रा में हिमालय की उच्च चोटी से गंगा में उसकी धारा में गायत्री की छुपी हुयी
ध्वनी के सहारे सागर की परम शून्यता जो ध्वनी रहित ध्वनी - एक ओंकार है उस तक पहुचना ही
गीता की साधना है ।
गायत्री क्या है ?
वह धुन जो वहाँ पहुंचा दे जहाँ परम शून्यता है , वह गायत्री है ; जिसको जपते-जपते जप करनें वाला कब
और कैसे अजप की स्थिति में पहुंचता है , का नाम गायत्री है ।
गायत्री का आप कुछ दिन जाप करें और जाप करनें के पहले बिचार रहित यदि हो सकें तो उत्तम होगा । आप का कुछ दिनों का यह जाप आप को बताएगा की गायत्री क्यों छंदों का छंद है जिसका अर्थ तो कुछ भी नहीं होता , लेकिन यह आप को छंद के उस स्थान पर पहुंचा देगा जहाँ से सभी छंद पैदा होते हैं ।
गायत्री छंद रूप में वह माध्यम है जिस से एक ओंकार मिलता है , एक ओंकार हिमालय की शून्यता में है ,
सागर के शांत पन में है और इस ॐ ध्वनी का जिक्र संत जोसेफ बायबिल में करते हैं , यह वह धुन है जिस से विज्ञानं का टाइम-स्पेस है ।
हिमालय एवं सागर से ॐ मिलता है और गंगा की धारा आप को गायत्री छंद को देती है , गंगा में आप का रुख चाहे हिमालय की ओर हो या सागर की ओर हो , कोई फर्क नहीं पड़ता जो मिलना है वह मिल जाएगा यदि मन-बुद्धि में श्रद्धा की लहर हो । गंगा और यमुना लगभग एक जगह से निकलती हैं तथा प्रयाग में दोनोंका मिलन होता है , दोनों अपनें-अपनें अनुभवों का आदान-प्रदान करती हैं और इस अवधि में यमुना
गंगा को समर्पित हो कर अपनें अस्तित्व को खो कर धन्य हो जाती है ।
प्रयाग है , बैराग्य का साकार रूप , बैरागी को भोगी नहीं देख पता जबकि वह होता है , प्रयाग संगम से कुछ दूर आगे जानें पर यमुना नजर नहीं आती लेकिन वह होती है , संगम से कुछ किलोमीटर आगे सागर को ओर चले ,वहाँ एक प्राचीन शिव मन्दिर मिलेगा जो जीर्ण अवस्था में होगा वहाँ तक गंगा में यात्रा करनें पर एक तरफ़ गंगा का पानी नजर आता है और दूसरी तरफ़ यमुना का पानी , आप जब कभी प्रयाग जाए तो इस बात की सत्यता को जरुर देखनें का प्रयाश करें , आप को बहुत आनद मिलेगा ।
हिमालय की शून्यता , गंगा - धारा की गायत्री , प्रयाग का बैराग्य तथा सागर का ॐ उनको मिलता है जो
तन- मन से बैरागी हैं ।
गंगा जल भारत भूमि पर एक अमृत है लेकिन इस अमृत को पानें लायक होना पड़ता है , क्या आप तैयार हैं ?
====ॐ=======
गीता में परम श्री कृष्ण कहते हैं --------
नदियों में गंगा [ गीता-10.31 ], स्थिर रहनें वालो में हिमालय [गीता-10.25 ], जलाशयों में समुद्र
[गीता - 10.24] , छंदों में गायत्री [गीता-10.35] और वेदों में एक ओंकार [ॐ], मैं हूँ ।
सागर से सागर तक की यह गीता-यात्रा आप जहाँ से चाहें वहाँ से प्रारम्भ कर सकते हैं ।
भोग से योग की इस यात्रा में हिमालय की उच्च चोटी से गंगा में उसकी धारा में गायत्री की छुपी हुयी
ध्वनी के सहारे सागर की परम शून्यता जो ध्वनी रहित ध्वनी - एक ओंकार है उस तक पहुचना ही
गीता की साधना है ।
गायत्री क्या है ?
वह धुन जो वहाँ पहुंचा दे जहाँ परम शून्यता है , वह गायत्री है ; जिसको जपते-जपते जप करनें वाला कब
और कैसे अजप की स्थिति में पहुंचता है , का नाम गायत्री है ।
गायत्री का आप कुछ दिन जाप करें और जाप करनें के पहले बिचार रहित यदि हो सकें तो उत्तम होगा । आप का कुछ दिनों का यह जाप आप को बताएगा की गायत्री क्यों छंदों का छंद है जिसका अर्थ तो कुछ भी नहीं होता , लेकिन यह आप को छंद के उस स्थान पर पहुंचा देगा जहाँ से सभी छंद पैदा होते हैं ।
गायत्री छंद रूप में वह माध्यम है जिस से एक ओंकार मिलता है , एक ओंकार हिमालय की शून्यता में है ,
सागर के शांत पन में है और इस ॐ ध्वनी का जिक्र संत जोसेफ बायबिल में करते हैं , यह वह धुन है जिस से विज्ञानं का टाइम-स्पेस है ।
हिमालय एवं सागर से ॐ मिलता है और गंगा की धारा आप को गायत्री छंद को देती है , गंगा में आप का रुख चाहे हिमालय की ओर हो या सागर की ओर हो , कोई फर्क नहीं पड़ता जो मिलना है वह मिल जाएगा यदि मन-बुद्धि में श्रद्धा की लहर हो । गंगा और यमुना लगभग एक जगह से निकलती हैं तथा प्रयाग में दोनोंका मिलन होता है , दोनों अपनें-अपनें अनुभवों का आदान-प्रदान करती हैं और इस अवधि में यमुना
गंगा को समर्पित हो कर अपनें अस्तित्व को खो कर धन्य हो जाती है ।
प्रयाग है , बैराग्य का साकार रूप , बैरागी को भोगी नहीं देख पता जबकि वह होता है , प्रयाग संगम से कुछ दूर आगे जानें पर यमुना नजर नहीं आती लेकिन वह होती है , संगम से कुछ किलोमीटर आगे सागर को ओर चले ,वहाँ एक प्राचीन शिव मन्दिर मिलेगा जो जीर्ण अवस्था में होगा वहाँ तक गंगा में यात्रा करनें पर एक तरफ़ गंगा का पानी नजर आता है और दूसरी तरफ़ यमुना का पानी , आप जब कभी प्रयाग जाए तो इस बात की सत्यता को जरुर देखनें का प्रयाश करें , आप को बहुत आनद मिलेगा ।
हिमालय की शून्यता , गंगा - धारा की गायत्री , प्रयाग का बैराग्य तथा सागर का ॐ उनको मिलता है जो
तन- मन से बैरागी हैं ।
गंगा जल भारत भूमि पर एक अमृत है लेकिन इस अमृत को पानें लायक होना पड़ता है , क्या आप तैयार हैं ?
====ॐ=======
Comments