बुद्धि योग गीता - भाग - 05
गीता परम सागर में तैरो ** गीता एक परम सागर है , इसमें तैरो , डरो नहीं , यदि डूब गए तो पता तक न चल पायेगा और आप होंगे परम धाम में । ** गीता की तैराकी में थकान नहीं है , जितना तैरोगे उतना ही और तरो ताजा होते जायेंगे । ** इतना अपनें अंदर बैठाकर गीता की ओर चलें की गीता अमृत - बिष दोनों है । ** गीता से उपजा अहंकार संखिया जहर है और जब गीता से अहंकार समाप्त हो तो यह अमृत है । ** गीता की मैत्री कृष्णमय बनाकर परम आनंदित करती है । कृष्णमय होना क्या है ? गीता का शंख , चक्र , गदा एवं पद्म धारण किया हुआ कृष्ण एक माध्यम है , अपरा भक्ति परा भक्ति में तब पहुंचाती है जब इसमें गति रहती है और परा भक्ति कृष्ण मय होनें का द्वार है । कृष्ण मय योगी भावातीत होता है , गुनातीत होता है और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का द्रष्टा होता है । ===== ॐ =====