गीता योगी कौन है ?
१- गीता योगी गीता पढ़ता नही , गीता में बसता है । २- पढ़नें वाला और गीता में कुछ दूरी होती है - वहाँ दो होते हैं और बसाहुआ स्वयं गीतामय होता है , उसकी हर श्वाश से गीता अंदर जाता है और बाहर निकलता है । ३- भोग की दौड़ जब माथे पर आये पसीनें को सुखनें नहीं देती तथा ऐसा लगनें लगता है की मै आगे नहीं पीछे जा रहा हूँ तब अन्तः करण में गीता की किरण फूटती है । ४- जिसनें इस किरण को पहचान लिया , वह बन गया बैरागी , जानलेता है क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ के रहस्य को और आ जाता है समत्व-योग में तथा जो नहीं देख पाता वह भोग में और अधिक गति से भागनें लगता है । ५- गीता-योगी गीता के श्लोकों का भाषांतर नहीं करता वह भाषा रहित गीता भाव में बहता रहता है । ६- गीता योगी के पास भाषा का अभाव होता है लेकिन जो जागनाचाहते हैं वे गीता-योगी के नजदीक होनें पर स्वयं जग जाते हैं । ७- सिद्धि प्राप्त योगी radio active matters - राज धर्मी पदार्थों की तरह होते हैं जिनके तन से चेतन मय फोतोंस [photons] का विकिरण होता रहता है , जो लोग इस क्षेत्र में आते हैं उनको गीता सुनना नही पड़ता उनमें गीता की ऊर्जा स्वतः भर जाती है । ८- गीता-योगी द्रष्