गीता यात्रा
गीता कहता है ----- भोग - भगवान् एक साथ एक बुद्धि में एक समय नहीं रहते ॥ फिर क्या करें ? क्या भोग से भागें ? क्या हिमालय पर जा कर कठीन तप करें और ..... भोग की ओर हर पल अपनी पीठ कर के रहें ? पहली बार यदि कोई आकाश से किसी ऐसे तालाब को देखे जिसमें कमल के फूल ही फूल किले हों तो क्या वह कभी यह सोच सकता है की ----- यह कमल कीचड़ से हैं ; इनकी जद कीचड़ से खुराक इनको ऎसी दे रही है की ये इतनें खूबशूरत हैं । कभी बहुत ही हैरानगी होती है , यह सोच कर की ........ मिटटी से चन्दन की जड़ें इतनी मादक खुशबू अपने बच्चे - चन्दन के पेड़ में कैसे डालती होंगी ? मिटटी से कमल की जड़ें कैसे इतनी गहरी खूबशूरती निकालती होंगी ? यदि यह सब संभव है तो ...... यह भी संभव होगा की ------ भोग से ही ब्रह्म की ओर कोई मार्ग जाता होगा ॥ क्या है वह मार्ग ? सीधा और सरल मार्ग है ...... भोग में उठा होश ही वह मार्ग है ॥ ==== ॐ ======