गीता अमृत - 86
गीता प्रेम पुष्प [क] स्वयं पर ठहरना , ध्यान है और पर पर ठहरना , भोग है । [ख] संसार एवं विज्ञान तर्क आधारित हैं और दोनों का नाभि केंद्र - प्रभु , तर्कातीत है । [ग] शास्त्रों का ज्ञान यदि अहंकार की जननी बनें तो वह ज्ञान नहीं , अज्ञान होता है । [घ] बुद्धि - चेतना के मध्य का पर्दा जब होश में उठता है तब वह ब्यक्ति बुद्ध होता है । [च] बुद्धि - चेतना के मध्य का पर्दा जब बेहोशी में उठता है तब वह ब्यक्ति पागल हो जाता है । [छ] देह में आत्मा की खोज , घर में प्रभु की खोज बन जाती है । [ज] घर में प्रभु की खोज , सत से मिलाती है । [झ] चिंता रहित ब्यक्ति प्रभु में होता है । [क-१] अहंकार चिंता का बीज है । [ख-१] मनुष्य अपनें अंत समय तक खोज में रहता है , आखिर वह क्या खोज रहा है जिसमें उसका जीवन सरकता चला जाता है लेकीन वह मिलता भी है , कहना कुछ सही न होगा । [ग-१] मनुष्य पृथ्वी पर सम्राट है लेकीन सम्राट होते हुए भी भिखारी की तरह क्यों रहता है ? [घ-१] मनुष्य मात्र एक ऐसा जीव है जो मंदिर में भी भीख माँगता है , क्यों ? इश्वर खोज का बिषय नहीं है , इश्वर सब का आदि मध्य और अंत है । खोजा उसे जाता है जो दूर ह