गीता में दो पल - 5
1- असीम बुद्धि मिली हुयी है ,आप को । यक़ीनन यह पल आपको दुबारा नहीं मिलनें वाला , जितनी दूरी तय कर सकते हो , कर लो ,बादका पछतावा आपके काम न आयेगा ।अनंतकी यात्राके लिए आप बुद्धि मार्गको अपनाया है और आज बुद्धि प्रधान युग चल रहा है , आपके कदम हैं तो सही मार्ग पर यह मार्ग हैं , दुर्गम । 2- बुद्धि मार्गी धीरे - धीरे पहले बाहर से अकेला होता जाता है और जब पूर्ण एकांत उसे भा जाता है तब --- 3- उसकी साधनाका अगला चरण प्रारम्भ होता है। अगले चरण में अन्दर से रिक्त होना प्रारम्भ हो जाता है। 4- बाहरकी रिक्तताको समझना बहुत आसान तो नहीं लेकिन समझा जा सकता है लेकिन अन्दरकी रिक्तता मनुष्य को द्विज बना रही होती है । ** द्विज क्या है ? द्विज का अर्थ है , दुबारा जन्म लेना । दुबारा जन्म वही ले सकता है जो पहले मरे और कोई मरनें को कितनी आसानी से स्वीकार सकता है ,यह सोचका बिषय है । 5- अन्दरकी रिक्ततामें दो द्वार खुलते हैं ; एक सीधे बोधिसत्व में पहुँचाता है और दूसरा द्वार जिसके आकर्षणसे बचना अति कठिन होता है , वह पागलपन में पहुँचाता है । ** आप अपनें बुद्धि - योग साधना में हर पल होश बनाए रखें । ~~ ॐ ~~