गीता अमृत - 96
भोग से भागो नहीं , जागो भोग से लोग भाग कर हिमालय पहुँचते है , सत्य की खोज के लिए , लेकिन उनके साथ क्या घटित होता है ? भागना , भय की छाया है और भय के साथ प्रभु से जुड़ना एक भ्रम होता है - गीता सूत्र - 2.52 कहता है - मोह के साथ बैराग्य संभव नहीं और बिना बैराग्य सत की खोज संभव नहीं । अब आप उनके चेहरों पर नजर डालें जो नित मंदिर में दिखते हैं । सभी ऐसे दिखाते हैं जैसे चोर कोतवाल के सामनें खडा हो , भयमें जो पूर्ण रूप से डूबे हैं , वे मंदिर में दिखते हैं । रामचरित मानस के रचनाकार श्री तुलसी दास जी कहते हैं ---- बिनु भय होई न प्रीति .... अर्थात प्रीति की लहर उठानें के लिए भय को अपनाना जरुरी है , सबकी अपनी - अपनी सोच है और अपनी - अपनी यात्रा भी करनी है । गीता तत्त्व विज्ञान में , भय - मोह तामस गुण के तत्त्व हैं और राजस - तामस गुण प्रभु मार्ग के मजबूत अवरोध हैं । गीता कहता है - यदि तुम भय में हो तो प्रभु से प्रीति क्या करोगे , क्या गाय कसाई से प्रीति करती है या कर सकती है ? प्रीति सत है और सत वह है जो बंधन मुक्त हो । भोग से भोग में हम सब हैं , संसार भोग से परिपूर्ण एक माध्यम है , संसार से