बुद्धि - योग गीता भाग - 01
भूमिका बुद्धि योग गीता के नाम से गीता के अठ्ठारह अध्यायों की यात्रा प्रारम्भ की जा रही है , आप सादर आमंत्रित हैं । यहाँ गीता के प्रत्येक अध्याय से केवल उन श्लोकों को लिया जाएगा जो सीधे बुद्धि पर हथौड़ा मारते हैं । तर्क - वितर्क के केंद्र को बुद्धि कहते हैं और यहाँ आप को गीता के उन श्लोकों को पायेंगे जो आप की बुद्धि में एक नहीं अनेक तर्क - वितर्क पैदा करनें में समर्थ हैं । बुद्धि एक ऐसा तत्त्व है जो विकार से निर्विकार में पहुंचा सकती है और स्वयं स्थिर हो कर मन के ऊपर अंकुश लगा सकती है । प्रभु का मार्ग है आस्था से और विज्ञान का मार्ग है तर्क से । आस्था समर्पण से है और तर्क की जड़ संदेह से निकलती है , जितना गहरा संदेह होगा उठाना गहरा विज्ञान निकलनें की संभावना होती है लेकीन संदेह के साथ प्रभु से जुड़ना असंभव होता है । संदेह से नफरत न करो , संदेह को समझो और जब संदेह के प्रति होश बनेगा तब संदेह श्रद्धा में स्वयं ढल जाएगा । बीसवी सताब्दी के प्रारम्भ में आइन्स्टाइन के पास क्या था जिसके आधार पर वे अपनें थिअरी आफ रिलेटिविटी को सिद्ध करते ? लेकीन उनकी आस्था इतनी मजबूत थी कोई उनके सामनें रुक न पा