गीता तत्त्व भाग - 01
● गीता तत्त्व -दो शब्द ● * गीता मूलतः अर्जुन और प्रभु श्री कृष्णके संबादके रूप में ज्ञान -विज्ञानका एक ऐसा रहस्य है जिसमें भोग कर्मको रूपांतरित करके उसे कर्म योगका रूप देनेंकी पूरी मनोवैज्ञानिक गणित दी गयी है । * गीतामें अर्जुन अपनें 16 प्रश्न 86 श्लोकोंके माध्यम से एक के बाद एक उठाते हैं और प्रभु उनके प्रश्नों के सम्बन्ध में अपनें 574 श्लोकों को बोलते हैं । * गीताका प्रारम्भ धृतराष्ट्रके श्लोक से है जिसमें वे अपनें सहयोगी संजयसे पूछ रहे हैं :--- " धर्म क्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेताः युयुत्सवः । मामकाः पाण्डवा: च एव किम् अकुर्वत संजय ।।" < भाषांतर > " हे संजय ! धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्रमें मेरे और पाण्डु के पुत्रोंनें क्या किया ? " * गीता के 700 श्लोको में धृतराष्ट्रका यह एक मात्र श्लोक है और इनके सहयोगी संजयके अपनें श्लोक 39 हैं । * गीता - ज्ञान , गीता के 660 श्लोकों ( अर्जुन के 86 श्लोक + प्रभु के 574 श्लोक ) में ही सीमित होना चाहिए लेकिन यदि 01 श्लोक धृतराष्ट्रका और 39 श्लोक संजयके गीता से निकाल दिए जाएँ तो गीता अधूरा हो जाता है। * गीता तत्त्व