गीता सन्देश - 15
आसक्ति भोग ऊर्जा का बीज है आप ज़रा सोचना ----- भोग न होता तो योग की बात कैसे होती ? दुःख न होता तो सुख को कौन जानता ? पराये का भाव न होता तो अपनें शब्द का क्या होता ? हमारे पास ऎसी कौन सी ऊर्जा है जो सोचनें को मजबूर करती है ? हमारी सोच का मूल केंद्र क्या होता है ? हमारी सोच हमें सुख में पहुंचाती है या दुःख में ? सोचनें का परिणाम यदि दुःख है तो हम इतना सोचते क्यों हैं ? हमें कभी - कभी इन प्रश्नों के बारे में एकांत में बैठ कर सोचना चाहिए और इन की जो सोच होगी ....... वह सोच रहित होनें के रहस्य में पहुंचा सकती है । सोच , आसक्ति का बीज है ...... आसक्ति से कामना , संकल्प , विकल्प उठते हैं जो भोग तत्त्व हैं और हमें भोग का गुलाम बनाते हैं । कामना में बिघ्न पड़ने पर क्रोध उठता है , और ..... क्रोध अहंकार की ऊर्जा का सूचक होता है । यह मैं नहीं कह रहा , यह बातें प्रभु श्री कृष्ण गीता में ----- अर्जुन को बता रहे हैं ॥ गीता कोई सांप नहीं है ..... गीता से डरना और भयभीत रहना उनका काम है , जो ....... न आस्तिक हैं ---- और ...... न नास्तिक , ==== ॐ ======