गीता मर्म - 16
गीता रहस्य की एक झलक [क] गीता सूत्र - 2.48 आसक्ति रहित कर्म , समत्व- योग है ...... [ख] गीता सूत्र - 18.24 अहंकार में किया गया कर्म , राजस कर्म होता है ..... [ग] गीता सूत्र - 3.19,3.20 आसक्ति रहित कर्म , प्रभु का द्वार है ..... गीता के तीन सूत्र आप को दिए गए , आप इन सूत्रों में अपनें को देखें , ये सूत्र एक दिन के लिए नहीं हैं , इनको रोजाना आप अपनाएं , यदि श्री कृष्ण मय होनें के इच्छुक हों तब । आसक्ति एवं अहंकार रहित होना अपनें बस में नहीं है , यह योग की एक स्थिति है जहां आसक्ति - अहंकार स्वतः लुप्त हो जाते हैं और प्रभु की ऊर्जा कण - कण में भर जाती है । मनुष्य कुछ कर नहीं सकता , क्योंकि वह जो भी करेगा उसके करनें की ऊर्जा निर्विकारनहीं होगी , उसके तन , मन एवं एवं बुद्धि में गुणों की ऊर्जा होगी जो प्रभु की ओर होनें नहीं देती । प्रभु में मन को टिकाना , प्रभु मय बना सकता है ..... प्रभु की सोच योगी बनाती है ..... प्रभु में टिका मन , बैरागी बनाता है .... संसार के आकर्षण का द्रष्टा , प्रभु मय होता है ..... ====== ॐ =======