गीता मर्म - 42
गीता के दो श्लोक :---- [क] गीता श्लोक - 13.30 प्रकृति को करता देखनें वाला यथार्थ देखता है ........... [ख] गीता श्लोक - 13.31 सभी जीवों को ब्रह्म के फैलाव रूप में देखनें वाला , ब्रह्म - बोध से परिपूर्ण होता है ....... जो कण - कण में परमात्मा को देखता है , वह परमात्मा से परिपूर्ण होता है --------- जो मैं और तूं को अलग - अलग देखता है , वह माया में डूबा ब्यक्ति होता है ---------- जो तूं को भी मैं में देखता है , वह प्रभु भक्ति में डूबा भक्त प्रभु मय ही होता है ----------- दुसरे विश्व - युद्ध के समय की बात है ; एन संन्यासी बर्मा के जंगलों में नाच रहा था और पास में अंगरेजों की सेना का कैम्प लगा हुआ था । अंग्रेज सिपाही उस योगी को जासूश समझ कर बंदी बना लीया और उस से पूछनें लगे की वह किसका जासूश है लेकीन वह तो अलमस्ती में था , नाचना और हसना , बस दो काम थे उसके । सिपाहियों की सारी कोशिशें बेकार गयी , वह योगी कुछ भी न बोला अंत में सिपाही उस योगी के पेट में भाला आर - पार कर दिया , तब वह योगी नाचता , नाचता जब जमीर पर गिरा , तब बोला ---- मैं नहीं जानता था की आप इस रूप में मुझसे मिलेंगे ॥ परम का