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गीता की यात्रा

मन से निर्वाण तक गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं : [क] अपरा प्रकृति के आठ तत्वों में से एक तत्त्व मन है ..... [ख] मनुष्यों में चेतना और मन , मैं हूँ ....... मनुष्य का मन एक ऐसा माध्यम है जो ----- मनुष्य जहां है , वर्तमान में , वहाँ से दो तरफ ले जा सकता है ...... * नरक की ओर .... और ** निर्वाण की ओर .... वह जो .... अपनें मन की वर्तमान स्थिति को समझ गया , वह तो निर्वाण मेमन पहुँच सकता है ॥ वह जो .... वर्तमान में अपने मन का गुलाम है , उसे तो सीधे नरक ही जाना है , ऐसा समझो ॥ गीता में प्रभु कहते हैं : मन माध्यम से निर्वाण में पहुंचनें का केवल और केवल एक ही दिशा है .... ध्यान / योग का ..... और न दूजा कोई ॥ आप अपानें मन को समझें और ... यह निश्चित करे की ..... आप को किधर जाना है ॥ ==== ॐ =====