गीता अमृत - 60
गीता बानी [क] गीता सूत्र - 18.24 - 18.27 भोग - भाव एवं अहंकार के सम्मोहन में जो कर्म होते हैं , वे राजस कर्म हैं । [ख] गीता सूत्र .... 7.12 - 7.15, 18.40 पुरे ब्रह्माण्ड में गुण रहित सत का अभाव है , प्रभु के तीन गुणों की माया - माध्यम में माया से टाइम स्पेस है । गुण रहित को खोजना ही प्रभु की खोज है जो संसार की ग्रेविटी के बिपरीत चलनें से पूरी होती है । [ग] गीता सूत्र ...... 2.45, 3.5, 5,22, 14,19, 14.23 कर्म करता ,मनुष्य नहीं , गुण हैं , मनुष्य तो द्रष्टा है । [घ] गीता सूत्र ... 2.62 - 2,63, 3.27, 5.23, 5.26 , 16.21, 7.11, 14.7, 14.12, 14.15, 7.20, 7.27, 6.2, 6.4, 6.24 राजस गुण को आसक्ति, कामना, क्रोध , लोभ , काम , संकल्प , बिकल्प , आदि से पहचाना जाता है । राजस गुण का सम्मोहन प्रभु की ओर रुख नही करनें देता । काम क्रोध एवं लोभ नरक के द्वार हैं । कामना टूटनें का भय , क्रोध की ऊर्जा पैदा करता है । [च] गीता सूत्र .... 7.20 , 18.72, 18.73 कामना एवं मोह अज्ञान की जननी हैं । [छ] गीता सूत्र ..... 4.19, 4.23, 18.59, 18.60 राजस गुण से अप्रभावित ब्यक्ति , योगी है । ======= ॐ =======