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मोह की ऊर्जा क्या है ?

मोह , भय और आलस्य एक ऊर्जा के तीन रूप हैं जो तामस गुण की ऊर्जा है । मोह और भय एक साथ रहते हैं : कभी मोह आगे दिखता है तो कभी भय । गीता की मुख्य जड़ है - मोह ; अध्याय एक में अपनें सगे - सम्भंधियों को देख कर अर्जुन के अन्दर जो ऊर्जा बहती है , वह है , मोह की ऊर्जा । अर्जुन क्या करनें वहाँ - कुरुक्षेत्र में गए थे , जब उनको युद्ध नहीं करना था ? क्या वे पहले यह नहीं जानते थे की उनको किन - किन से युद्ध करना है ? कुरुक्षेत्र में दोनों सेनाओं के मध्य खड़ा हो कर अपनें सभी सगे सम्बन्धियों को देख कर अर्जुन भाउक हो उठते हैं , इसका सम्बन्ध उनके अन्दर स्थिति गुण समीकरण से हैं । वे गए तो थे , युद्ध के लिए लेकीन जब अपनों में नौजवानों , बुजुर्गों , गुरुओं और सगे सम्बन्धियों को देखते हैं तो उनके अन्दर का राजस गुण फीका पड़ जाता है और राजस का फीका पड़ना ही तामस गुण है । हो सकता है , वहाँ उपस्थित अपनें सगे - सम्बन्धियों में बहुतों को अर्जुन मुद्दत के बात देखें हो और उन लोगों को देखनें के बात भाउक हो उठना स्वाभाविक भी है । गीता में वे सभी रसायन हैं जो मोह को , चाहे वह कितनी पुरानी हो , उसे जड़ से निकालनें की