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अर्जुन का प्रश्न - 6

अर्जुन गीता-श्लोक 6.33-6.34 के माध्यम से जानना चाहते हैं ..... मन जिसकी गति वायु से भी अधिक है , उसे शांत कैसे करें ? परम श्री कृष्ण अपनें श्लोक 3.37 में कहते हैं ....यह काम अभ्यास एवं वैराग्य से सम्भव है । गीता में परम श्री कृष्ण के पूरे 556 श्लोकों का सीधा सम्बन्ध मन - साधना से है जिनसे यह पता चलता है - अभ्यास क्या है और बैराग्य क्या है । गीता में श्री कृष्ण के सभी उत्तर ऐसे हैं जिनसे भ्रम दूर नहीं होता अपितु भ्रम और गहरा जाता है । प्रोफेसर अलबर्ट आइंस्टाइन कहते हैं---जो बुद्धि प्रश्न बनाती है उस बुद्धि में उस प्रश्न का हल नहीं होता और यही बात गीता - सूत्र 2.41 भी कहता है। अब हमें गीता - श्लोक 6.37 के बारे में देखना चाहिए । अभ्यास एवं बैराग्य दो अलग- अलग कर्म नहीं हैं , साधना में अभ्यास के फल के रूप में बैराग्य मिलता है जो प्रभु का प्रसाद है । बैराग्य का अर्थ यह नही है की घर से भागकर किसी तीर्थ में पहुँच कर सन्यासी वस्त्र को धारण करलेना । आपनें कबीर की इस पंक्ति को जरुर सूना होगा----मन न रंगाये , रंगाये योगी कपडा और यही बात गीता में श्री कृष्ण भी कहते हैं। गीता-सूत्र 2.5