गीता मर्म - 07
दो हाँथ की ताली या एक हाँथ की ------ अपनें दोनों हांथों से ताली बजाकर देखना और यदि कहीं आप को किसी दरिया के किनारे एकांत में यह काम करनें का मौक़ा मिले तो चुकना नहीं । ताली के साथ प्रारम्भ से अंत तक रहना और जिसमें आवाज बिलीन हो रही हो उसे जरूर पकडनें की कोशिश करना । ध्वनि चाहे कोई भी क्यों न हो , सब का अंत ॐ में होता है । गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं -- एक ओंकार , मैं हूँ , अब्यक्त अक्षर , मैं हूँ , आकाश में शब्द , मैं हूँ । दो के मध्य जो घटित होता है उसका प्रमाण होता है और जो एक के साथ घटित हो , उसका प्रमाण क्या हो सकता है ? जी हाँ उसका भी प्रमाण है - अस्तित्व और जो सब का अदि अंत हो , गीता उसे परमात्मा कहता है । सूफी एवं झेंन परम्परा में एक हाँथ की ताली , ध्वनि रहित ध्वनि , दरवाजा रहित दरवाजा [gateless gate ] जैसे शब्द देखनें को मिलते हैं और इन सब की अनुभूति का नाम ही गीता का ब्रह्म है जो तब भी है जब सब कुछ समाप्त हो चुका होता है , जो तब भी था जब सब कुछ आनें वाला ही था जो आज भी है जब सब कुछ है और जो सब के होनें का बीज है । एक हाँथ की ताली की अनुभूति के लिए ही दो हांथों की ताली ह