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गीता-अमृत बूंदे---भाग-२

पहले आप इस श्रृंखला के अंतर्गत गीता से कुछ अमृत - बूंदों का आनंद उठाया अब कुछ और बूंदे आप को सादर सेवार्पित हैं । १- गीता-श्लोक 18.40 3.5 3.28 18.11 14.10 गुणों का एक समीकरण हर मनुष्य के अंदर हर पल रहता है जो प्रकृति से ग्रहण की जानें वाली वस्तुओं से हर पल बदलता रहता है । प्रकृति से हम भाव,भोजन , वायु एवं जल ग्रहण करते हैं और प्रकृति में कोई भी ऐसी वस्तुनही जिसमें तीन गुन न होते हों । कोई भी जीव धारी एक पल भी कर्म रहित नहीं रह सकता क्योंकि कर्म गुणों के प्रभाव के कारण होते हैं । गुणों से स्वभाव बनता है और स्वभाव से कर्म होते हैं । जब एक गुन उपर उठता है तब अन्य दो गुन मंद पड़ जाते हैं । २- गीता-श्लोक 7.14 7.15 तीन गुणों वाली माया से सम्मोहित ब्यक्ति परमात्मा से दूर भोगों में आसक्त रहता हुआ आसुरी स्वभाव वाला होता है और माया मुक्त ब्यक्ति परमात्मातुल्य होता है । ३- गीता श्लोक 7.24 12.3 12.4 परमात्मा की अनुभूति मन-बुद्धि से परे की होती है । ४- गीता श्लोक 2.42--2.44 तक भोग-भगवान् को एक साथ एक बुद्धि में नहीं रखा जा सकता । ५- गीता श्लोक 4.38 13.2 6.42 7.3 7.19