गीता मर्म - 18
गीता के कुछ शब्द अनन्य योगी अनन्य भक्ति ब्यवसायिका बुद्धि परम भक्ति परा भक्ति इन शब्दों को समझनें के लिए आप देख सकते हैं , गीता के निम्न श्लोकों को ------- 2.41 2.44 8.14 12.6, 12.7 13.11, 13.12 18.54, 18.55 जो शब्द ऊपर बताये गए हैं उनका सम्बन्ध सीधे तौर पर स्थिर मन , स्थिर बुद्धि से है । जब अभ्यास - योग से मन - बुद्धि में प्रभु के अलावा और कुछ नहीं रह जाता , तब उस योगी की स्थिति अनन्य भाव की होती है , अनन्य भाव ठीक भावातीत की स्थिति से पहले की स्थिति होती है , जहां ---- सर्वत्र प्रभु दिखता है ....... सब में प्रभु दिखता है ..... सब प्रभु में दीखते हैं ..... और वह योगी परम आनंदित होता है ॥ ===== ॐ ======