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तंत्र और योग ---5

शिव-शक्ति पुरुष[male]-स्त्री [female] चेतना - कुण्डलिनी स्त्री-पुरुष के सहयोग से जब तंत्र साधना की जाती है तब एक विशेष बात पर ध्यान रखनें की जरूत होती है । दो में से एक की ऊर्जा निर्विकार - उर्जा होनी चाहिए , जिसके ऊपर गुणों का असर न हो । काम भाव का द्रष्टा होना , तंत्र - साधना है , यह साधना बहुत कठिन साधना है , अधिकांश साधक इस साधना को पुरी नहीं कर पाते और साधना का प्रतिकूल असर उनके जीवन को नरक बना देता है । स्त्री-पुरुष की उर्जायें आपस में मिल कर , निर्विकार हो कर मूलाधार चक्र को जागृत करती हैं , फल स्वरुप कुण्डलिनी जागृत होती है और चेतना का फैलाव होनें लगता है । चेतना ऊपर की ओर उठती है , ऊपर जब यह ह्रदय को छूती है तब बासना प्यार में बदल जाती है जहां गुणों का कोई प्रभाव नहीं होता । जब तक चेतना का फैलाव तीसरी आँख तक नहीं पहुंचता त्तब तक गुणों की पकड़ का असर रह सकता है, आज्ञा चक्र से आगे , साधना का मजबूत अवरोध अहंकार होता है , जो अहंकार को न जीत पाया वह पुनः भोग में गिर जाता है । तंत्र में स्त्री - पुरुष उर्जाओं का संगम वह है जहां न तो स्त्री-ऊर्जा होती है न ही पुरुष-ऊर्जा , वहाँ जो