गीता अमृत - 32
प्रभु की ओर ------- गीता में श्री कृष्ण कहते हैं ------ मन - बुद्धि के परे , मेरी अनुभूति ध्यान के माध्यम से निर्विकार मन - बुद्धि से योग सिद्धि पर ह्रदय में मिलती है ---यहाँ देखिये गीता सूत्र ... 6.24, 7.24, 12.3 - 12.4, 3.38, 10.20, 13.17, 13.22 15.7, 15.11, 15.13, 18.61 को , आत्मा - प्रभु की आहट ह्रदय में मिलती है यहूदी धर्म शास्त्र - तालमुद कहता है - Why was man created on the last day ? God created the gnat before Thee . अब आप सोचिये की प्रभु और मनुष्य का क्या रिश्ता है ? मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो भोग से योग में पहुँच कर प्रभु की किरण देख सकता है और इसके लिए मन - बुद्धि को निर्विकार बनाना पड़ता है । आइये अब हम कुछ ऐसे गीता में दिए गए उदाहरणों को लेते हैं जो साकार से निराकार एवं भावों से भावातीत की ओर ले जानें में सक्षम हैं -------- [क] श्री राम , श्री कृष्ण एवं अर्जुन , प्रभु हैं -- गीता सूत्र - 10.32, 10.31, 10.37 [ख] विष्णु , इन्द्र , कपिल मुनि , नारद , यमराज , प्रभु हैं -- गीता सूत्र - 10.21, 10.22, 10.26, 10.29 [ग] वेद्ब्यास , शुक्राचार्य , कुबेर - प्रभु हैं -- गीता सूत