गीता मर्म - 43
गीता श्लोक - 7.3 मनुष्याणां सहस्त्रेशु कश्चित् ययति सिद्धये । यततां अपि सिद्धानां कश्चित् माम वेत्ति तत्वत: ॥ श्लोक - 7।3 प्रभु अर्जुन से कह रहे हैं :----- अर्जुन ! हजारों लोग सिद्धि के लिए यत्नशील हैं , उनमें से एकाध लोग सिद्धि पा भी जाते हैं लेकिन ..... सिद्धि प्राप्त लोगों में से कोई - कोई कभी - कभी मुझे तत्त्व से जान पाता है ॥ अब आप को और हमें सोचना है ----- सिद्धि प्राप्त लोग जो प्रभु को तत्त्व से नहीं जान पाते , वे फिर क्या करते हैं ? सिद्धि प्राप्त लोग सिद्धि में फिर क्या पाते हैं , यदि परमात्मा को नहीं समझ पाते तो ? सीधी सी गणित है , कोई ज्यादा सोचनें की बात बात भी नहीं है ..... साधना एक यात्रा है जिसको कृष्णामूर्ति कहते हैं ----- Truth is pathless journey , और झेंन कहते हैं , दिशा रहित यात्रा । साधना में भोग से ऊपर उठाना पड़ता है अर्थात ....... तन , मन और बुद्धि को निर्विकार रखनें का यत्न करना होता है और जब यह हो जाता है तब ------ स्थिर मन - बुद्धि की स्थिति मिलती है और ....... इस स्थिति में सिद्धि मिलती है , सिद्धि क्या है ? सिद्धि में वह शक्ति आजाती है जो मनुष्य के भूत ,