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गीता में दो पल - 16 (अन्तः करण - 1 )

* गीता श्लोक : 6.23 में योगकी परिभाषा - दुःख संयोग वियोगः के रूप में और पतंजलि योग सूत्र में चित्त बृत्ति निरोधः केंरूप में हमनें गीता दो पल - 14 और 15 में देखी ।  * चित्त का हमारे सुख - दुःख की अनुभूतियों से गहरा सम्बन्ध  है । आइये ! चलते हैं ,चित्त के रहस्य को बुद्धि स्तर पर  समझनें ।  * कपिल मुनि ,कर्मद ऋषिके पुत्र अपनीं माँ स्वायम्भुव मनु ( पहले मनु : एक कल्प में 14 मनु होते हैं । इस समय इस कल्पके सातवें मनु श्राद्ध देव जी हैं ) की पुत्री देवहूतिको मोक्ष प्राप्ति हेतु सांख्य -दर्शन में कह रहे हैं :---  भागवत : 3.26.14 : बुद्धि ,अहंकार ,मन और चित्त - इन चार तत्वों से अन्तः करण है । # अन्तः करणको समझनें हेतु हमें इन चार तत्वोंको समझाना होगा लेकिन इसके पहले हम अन्तः करणकी बृत्तियाँ को देखते हैं ।  #* भागवत : 3.26 : कपिल मुनि कहते हैं :---  संकल्प , निश्चय , चिंता और अभिमान ,ये हैं अन्तः करणकी बृत्तियाँ ।  ** अब देखते हैं अन्तः करणके पहले तत्त्व , बुद्धिको ।  * बुद्धिके लिए गीता : 2.41+2.66+7.10 + 18.29 - 18.35 श्लोकोंको देखें ।  * निर्गुण बुद्धि ( गीता : 7.10 ) परमात्मा है [ बुद्ध