गीता अमृत - 57
कहाँ से मिले ज्ञान ? ज्ञान के सम्बन्ध में गीता के निम्न श्लोकों को देखना है ------ 18.19 - 18.22, 13.2, 13.7 - 13.11 15.10, 6.29 - 6.30, 9.29 इनके साथ हमें देखना चाहिए निको भी ----- [क] महान वैज्ञानिक आइन्स्टाइन कहते हैं ....... किताबों से जोज्ञान मिलता है , वह मुर्दा ज्ञान है , और जो ज्ञान मनुष्य की चेतना में है , वह है - सजीव ज्ञान । [ख] आइन्स्टाइन कहते हैं - Information is not knowledge. [ग] आइन्स्टाइन कहते हैं - In the oriental concetion something is exists which is beyond mind's reasoning . गीता कहता है - तीन प्रकार के गुण हैं और उनके आधार पर तीन प्रकार के लोग एवं उनके अपनें - अपनें ज्ञान भी हैं । गीता कहता है - वह ज्ञान जो सब में परमात्मा को मह्शूश कराये , सात्विक ज्ञान है , जो ज्ञान सभी जीवों को पृथक - पृथक भावों में देखनें की ऊर्जा भरे , राजस ज्ञान है और जो ज्ञान मात्र शरीर तक सीमित रहे , तामस ज्ञान है । गीता कहता है - तूम जहां हो वहीं से यात्रा करो अर्थात , यदि तामस गुण तुम पर प्रभावी हो तो पहले उसे समझो , यदि तुम राजस गुण धारी हो तो उसे पहले समझो और जब ऐसा करनें में सफल