गीता श्लोक - 6.1
●● गीता श्लोक - 6.1 ●● अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः सः संन्यासी च योगिः ................ " कर्मफल आश्रय रहित कर्म जो कर रहा है वह संन्यासी और योगी है " ** अर्जुन अध्याय - 5 के प्रारम्भ में प्रश्न करते हैं , संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनः योगं च शन्ससि एतयो: यत् श्रेयः एतयो: एकं तत् मे ब्रूहि सुनिश्चितम् " हे कृष्ण ! आप कभीं कर्म संन्यासकी तो कभीं कर्म योगकी प्रशंसा करते हैं , आप मुझे उस एकको बताएं जो मेरे लिए श्रेय हो " °° प्रभु इस प्रश्नके सन्दर्भ में 60 श्लोकोंको बोलते है ( श्लोक - 5.2 - 6.32 ) और श्लोक 6.1 उनमें 29वां श्लोक है । ^^ अर्जुन के प्रश्न - 5 के सन्दर्भ में गीता अध्याय - 5 के श्लोक 5.6 , 5.10 , 5.11 महत्वपूर्ण हैं जो कह रहे हैं ----- > कर्मयोगके बिना कर्मसंन्यास दुःखमय होता है । > आसक्ति रहित कर्म , कर्म योग का फल है । > कर्म योगी समभाव में रहता है । * आसक्ति रहित कर्मके लिए देखें --- 1- गीता -18.49 , 17.50 2 भागवत : 8.1.14 गीता कह रहा है : आसक्ति रहित कर्म नैषकर्म्य की सिद्धिमें पहुंचता है जो ज्ञान योगकी परानिष्