गीता मर्म - 04
मनुष्य के पास दो मार्ग हैं मनुष्य के पास दो मार्ग हैं , वह दोनों की समझ रखता है , दोनों का प्रयोग भी करता रहता है और यही कारण है की सब कुछ होते हुए भी जीवित प्राणियों में सब से अधिक तनहा जीव है । मनुष्य जब एक मार्ग पर कुछ चल लेता है तब उसके मन में दुसरे पर चलनें की जिज्ञाशा उठाती है और वह तुरंत अपना रुख बदल लेता है । आज का मनुष्य सब कुछ भोग की तराजू में तौलता है , चाहे वह वस्तु हो , प्यार हो या परमात्मा और गीता कहता है ---- भोग - प्रभु को एक समय एक साथ एक बुद्धि में रखता असंभव है , लेकीन हमारा काम एक के साथ चल नहीं पाता। मनुष्य के पास एक समझ होनी चाहिए , और वह है -- भोग से योग का सहारा ले कर प्रभु में मन - बुद्धि को केंद्रित करें , यह अभ्यास प्रभु मय बनाकर तनहाई से आनंद में ले जा सकता है । हमें क्या चाहिए ? सुख - दुःख का जीवन या आनंद का जीवन । पहला है भोग का जीवन और दूसरा है योग का जीवन । ====== ओम =======