अर्जुन का प्रश्न - 8 भाग....4
इस भाग में हम गीता के 34 श्लोकों [गीता श्लोक 9.1--9.34 तक ] को देखनें जा रहे हैं । गीता मूलतः साँख्य- योग आधारित है अतः इनमें दीगई बांते सांख्य आधारित ही हैं। आज लोग गीता तो पढ़ते हैं लेकिन इसकी गणित को भूल चुके हैं और इस कारण से गीता लोगों के अन्दर आसानी से नहीं पहुंच पाता। देखिये गीता सूत्र ----7. 7 , 9.6 - 9.7 , 8.17- 8.19 , 9.4- 9.5 , 7.4- 7.6 , 13.5- 13.6 , 13.19 , 14.3- 14.4 , 15.16 जब आप इन श्लोकों में रमेंगे तो जो मीलेगा वह कुछ इस प्रकार होगा---- जो कुछ भी ब्याप्त है , जो कुछ हम जानते हैं या जान सकते हैं वह सब प्रकृति- पुरूष के योग का फल है । परमात्मा से परमात्मा में तीन गुणों की माया से दो प्रकृतियाँ हैं जिनमें अपरा के आठ तत्वों में पञ्च महाभूत एवं मन, बुद्धि तथा अंहकार हैं और परा निर्विकार चेतना है। आगे इस प्रश्न के सन्दर्भ में परम श्री कृष्ण अर्जुन को यह बताना छते हैं की वे स्वयं परमात्मा है और इसके लिए कुछ उदाहरणों को इस प्रकार से देते हैं ------ रिग-वेद , यजुर्वेद , साम वेद , ॐ मैं हूँ [ गीता सूत्र - 8.12, 8.13, 9.17, 9.23, 10.22, 10.25] और कहते हैं , यज्ञ में मंत्रों स