Posts

Showing posts with the label सुमन

गीता अमृत - 88

हम कितना जानते हैं ? [क] दूसरों को देखते - देखते हम स्वयं को धीरे - धीरे भूल रहे हैं ....... [ख] पड़ोसी के घर के चिराग को देखनें से अपनें घर में रोशनी होना संभव है ...... [ग] अपनें घर में रोशनी के लिए अपना चिराग जलाना ही पड़ता है ...... [घ] दूसरों की कमी देखनेवाला अपनी कमियों से बंचित रह जाता है ....... [च] तनहा ब्यक्ति जब अपनें तनहाई की मूल को समझता है तब वह तनहा नही रहता ...... [छ] भोग के दर से भागा योगी नही बन सकता और रूप - रंग एवं राग को समझनें वाला भोगी नही रह सकता ...... [ज] खुशियों को बाटनें वाले अनेक हैं लेकीन लेनें वाले कितनें हैं ...... [झ] अपनें गम को भुलानें के लिए किसी और को मत खोजो , स्वयं को साथी बना लो ....... [प] लोगों की कमजोरी को देखनें वाले स्वयं को मजबूत कैसे बना सकते हैं ? ........ [फ] जो हमारे पास नहीं है , वह प्यारा है , यह भ्रम हमें बेचैन बना रखा है ........ गीता प्रेमियों के लिए गीता अमृत में दस बातें दी गयी है , आप को जो प्रिय लगें उनको आप अपना कर अपनें जीवन में उनका प्रयोग करे । गीता संन्यास का मार्ग है और संन्यास जब मिलता है ------ ## पीठ भोग संसार की ओर ह