गीता अमृत - 52
गांठे तो खुलेंगी ही ....... गांठें तो खुलेंगी ही -- चाहे आज खुलें या कल -- चाहे इस जनम में खुलें -- या अगले जनम में -- गांठें तो खुलेंगी ही । तीन तत्त्व और उनकी अपनी अपनी गांठें मनुष्य को इस भोग स्थल संसार में कही रुकनें नहीं देती । काम , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य , कामना, अहंकार - आठ गुण तत्त्व हैं जो मनुष्य को सत से दूर रखते हैं । लोग कहा करते हैं - शरीर समाप्ति के बाद क्या होता है , कौन जानता है ? बात भी भोग की दृष्टि से सत लगती है लेकीन गीता कुछ और बोलता है । गीता कहता है - शरीर समाप्ति के बाद आत्मा मन को अपनें संग रखता है और मन जीवन भर की कामनाओं का ब्लैक बोक्स है । मन आत्मा को विवश कर देता है , नया शरीर धारण करनें के लिए जिससे अतृप्त कामनाओं को पूरा किया जा सके [ गीता - 8.6, 15.8 ] मन अपने अधीन पांच ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से मनुष्य को संसार में भ्रमण कराता रहता है । मनुष्य का मन - बुद्धि तंत्र गुणों का गुलाम है । मनुष्य के अन्दर जिस काल में जो गुण ऊपर होता है मनुष्य संसार में उस गुण के तत्वों के रूप में संसार को देखता है । संसार और मनुष्य के चेतना के मध्य मन - बुद्धि त