तंत्र और योग ---3
तंत्र ध्यान विधि --1 तंत्र कहता है ----- प्राण वायु एवं अपान वायु के अंतराल में अपनी उर्जा केन्द्रित करो । गीता इस ध्यान विधि को अपनें श्लोक 4.29 - 4.30 में बताता है मात्र शब्दों में फर्क है । तंत्र एवं गीता की यह ध्यान -विधि किस तरह से संभव है ? मनुष्य का संपर्क संसार से पांच ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से है , मन-बुद्धि में बहनें वाली ऊर्जा तन के माध्यम से इन्द्रियों तक पहुंचती है यहाँ इस उर्जा - संचार का माध्यम है - तन और इन्द्रियों से बिषय तक इस ऊर्जा का कोई माध्यम नहीं होता ,यह संचार , विकिरण [radiation] से होता है । मन में जो विचार उठते हैं उनके उठनें में इन दो तरीकों का योग दान होता है । मनसे बिषय के जुडनें में उर्जा का बहाव अन्दर से बाहर की ओर होता है और ध्यान में ऊर्जा का बहाव बाहर से अन्दर की ओर हो जाता है , भोग एवं योग में उर्जा के बहाव की यह गणित है । तंत्र एवं गीता कहते हैं ------ प्राण-अपांन वायुओं के अंतराल में अपनी ऊर्जा को केन्द्रित करो --प्राण वायु वह श्वास है जिसको हम अन्दर लेते हैं और अपांन वायु वह श्वास है जिसको हम बाहर निकालते हैं - अब आप सोचिये की इनका अंतराल