गीता अमृत - 79
जा तूं परमेश्वर की शरण में ....... गीता श्लोक - 18.62 में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं ------- हे अर्जुन ! अब तूं जा उस परमेश्वर की शरण में , वहीं तेरे को प्रसाद रूप में शान्ति मिलेगी और उसकी कृपा से तेरे को सनातन परम धाम भी मिलेगा । गीता में इस श्लोक के बाद प्रभु के मात्र दस श्लोक और हैं , गीता का समापन हो रहा है और प्रभु ऎसी बात कह रहे हैं की जा तूं उस परेश्वर की शरण में । गीता में प्रभु [ देखिये गीता सूत्र - 10.9 - 10.11, 18.56- 18.57, 18.65 - 18.66 ] अभी तक कहते रहे हैं की मैं ही परमात्मा हूँ , मैं ही ब्रह्म हूँ , मैं ही जगत का आदि , मध्य एवं अंत हूँ और यहाँ कह रहे हैं -- जा तूं उस परमेश्वर की शरण में --- ऐसा क्यों कह रहे हैं ? गीता के बारह अध्यायों में लगभग पच्चासी श्लोकों के माध्यम से लगभग सौ से भी अधिक उदाहरणों से प्रभु अपनें साकार एवं निराकार रूपों के बारे में बताये हैं लेकीन यहाँ आ कर अर्जुन को क्यों कह रहे हैं की तूं जा उस परमेश्वर की शरण में ? कोई तो कारण होगा ही । गीता एक रहस्य है और गीता में श्लोक - 18.62 स्वयं में एक रहस्य है , इसकी सोच आप को बुद्धि - योग में पहुंचा सकती