गीता यात्रा
कर्म से भक्ति में कदम गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं ---- अर्जुन , ऐसा कोई नहीं जो कर्म बिना किये रह सके ; कर्म तो सब करते हैं और करते रहेंगे ॥ कर्म एक माध्यम है जो ........ सुख की ओर ले जा सकता है ---- जो दुःख का कारण भी बन सकता है ----- जो जीवन को नरक बना सकता है ..... और जो जीवन में स्वर्ग का अनुभव भी करा सकता है ॥ हम कर्म उसको समझते हैं जो ...... हमको भावों में बहाता रहता है , लेकीन ---- यह कर्म का प्रारम्भ है , कर्म तो एक मार्ग है जो ..... भोग से योग में पहुंचा कर उधर इशारा करता है ...... जिधर जो होता है उसको देखनें वाला वह होता है जिसका कर्म कर्म - योग बना गया होता है ॥ भावों से भावातीत में जो पहुंचाए ..... कर्म में जो अकर्म को दिखलाये ..... गुणों के सम्मोहन में जो निर्गुणी को दिखाए ---- वह है ..... वह कर्म , जिसकी चर्चा प्रभु अर्जुन से करते हैं ॥ ===== ॐ =====