गीता अमृत - 41
निर्गुण सत्व नहीं है - गीता -- 18.40 गीता सूत्र - 18.40 में श्री कृष्ण कहते हैं ..... पृथ्वी , आकाश एवं देव लोक में कोई ऐसा सत्व नहीं जिसके ऊपर गुणों की छाया न हो ----इस बात को समझना चाहिए । गीता सूत्र - 3,38 में श्री कृष्ण कहते हैं --- जैसे धुएं से अग्नि , मैल से दर्पण एवं जेर से गर्भ ढका होता है वैसे काम का अज्ञान , ज्ञान को धक कर रखता है । आप गीता की बात को जमीं पर देखनें का प्रयास करें - क्या सोना बिना पत्थर मिलता है ? क्या हीरा बिना पत्थर दीखता है .... जी नहीं पत्थर के अन्दर सोना - हीरा छुपा होता है , इस बात की तरह जैसे गीता सूत्र - 3.38 और गीता सूत्र - 18.40 सत्व के बारे में कह रहे हैं । आदि गुरु शंकराचार्य [ 788 - 820 AD ] कहते हैं ... अहम् ब्रह्मास्मि - ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या , सरमद [ 1659 AD ] कहते हैं - ला इलाही इल अल्लाह , मंसूर [ 857 - 922 AD ] कहते हैं - अनल हक और बुद्ध [ 556 - 486 BC ] कहते हैं - यह कहना की परमात्मा है , कुछ कठिन है क्यों की परमात्मा हो रहा है -- ऐसे परम तुल्य लोग जो कुछ भी कहे हैं उनके पीछे उनका अपना - अपना संसार का अनुभव है , यों ही नहीं बोला