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मोह वैराज्ञ

● मोह - वैराज्ञ ● °° गीता - 2.52 °° यदा ते मोहकलिलं बुद्धिः ब्यतितरिष्यति। तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतब्यस्य श्रुतस्य च ।। " जब तेरी बुद्धि मोह - दलदलसे बाहर होगी तब तुम सुनें हुए और सुननेंमें आनें वाले सभीं भोगोंसे तुम्हे वैराज्ञ हो जाएगा " भावार्थ :-- " मोह भोगकी रस्सी है और मोह - वैराज्ञ एक साथ एक बुद्धिमें नहीं बसते " " Fascination and renunciation donot stay together at a time in intellect " ** ऊपर ब्यक्त सूत्र ध्यान सूत्र है इसे आप अपनीं बुद्धिमें बसायें और जबभी मौका मिले संसारको समझनेंका , आप इसे प्रयोग कर सकते हैं । भोग - तत्त्वों जैसे काम , कामना , क्रोध , लोभ , भय , आलस्य , मोह और अहंकार की समझ ही मायाकी समझ है तथा माया की समझ माया मुक्त करती है । मायामुक्त योगी प्रभुसे परिपूर्ण होता है ~~~ ॐ ~~~