बुद्धि योग गीता - 08
गीता का अब्यक्त क्या है ? अब्यक्त का अर्थ है वह जिसके होनेकी अनुभूति तो हो लेकीन इन्द्रियों से जिसको ब्यक्त न किया जा सके । अब्यक्त को ब्यक्त करनें का कोई माध्यम नहीं है , अब्यक्त की कोई गणित भी नही बन सकती । वह जिसको अब्यक्त की अनुभूति हो जाती है वह कस्तूरी मृग जैसा हो जाता है , बेचैन हो उठता है उसे ब्यक्त करनें के लिए लेकीन कुछ करनें में ना कामयाब रहता है । बीसवी शताब्दी के प्रारम्भ में आइन्स्टाइन को जिन - जिन परम सत्यों की अनुभूति हुई उस समय विज्ञान के पास कोई साधन न थे ब्यक्त करनें के लिए और उनमें से कुछ की गणित कुछ समय बाद तो बन गयी लेकीन बहुत सी सूचनाओं की खोज आज भी जारी है । आइन्स्टाइन उससमय कहे --- ब्रह्माण्ड में कोई अज्ञात ऎसी शक्ती है जिसको आज डार्क ऊर्जा एवं डार्क पदार्थ कहते हैं , वह सभी सूचनाओं को एक दुसरे से दूर भगा रही है और हो सकता है यही ब्रह्माण्ड के अंत का कारन भी बने । आज बैज्ञानिक कह रहे हैं की ब्रह्माण्ड का 90% भाग डार्क मैटर क़ा है लेकीन इसका अभी तक कोई गणित नही है । गीता का अब्यक्त , अब्यक्त भाव वह है जिससे एवं जिसमें बिज्ञान क़ा ब्रह्माण्ड है । आप ज़रा गीता के अ