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गीता मर्म - 44

तत्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयो : । गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ॥ 3.28 प्रभु यहाँ कह रहे हैं :----- हे अर्जुन ! तत्त्ववित्तु यह समझते हैं - कर्म जो हो रहा है , वह गुण कर रहे हैं , मैं तो मात्र द्रष्टा हूँ । उनकी यह सोच उनको कर्म बंधन से मुक्त रखती है ॥ जब 1905 में आइन्स्टाइन E=mc2 [mass x square of the speed of light ] सूत्र दिया तो उस समय के सभी वैज्ञानिकों के दिमाक में भूकंप सा आगया क्योंकी सूत्र जितना छोटा था , उतना ही गंभीत इसकी चोट थी । आज का सारा न्यूक्लिअर विज्ञान आइन्स्टाइन के इस सूत्र से निकलता है । गीता का हर एक सूत्र आइन्स्टाइन जैसे सूत्र हैं , वह जो इनकी गणित बनानें में लग गया , वह गया , और जो अपनें ऊपर इन सूत्रों का प्रयोग करनें लगा , वह तत्ववित्तु बन गया । गीता का तत्त्ववित्तु वह है जो :----- प्रकृति - पुरुष ..... देह - विदेह ...... सत - असत ..... काम - राम , को ठीक वैसे जानता है जैसे ..... प्रभु अर्जुन को बतानें की कोशिश कर रहे हैं ॥ ===== ॐ =======