गीता अमृत - 95
कहते हैं -- श्रद्धा से परमात्मा मिला सकती है इस सम्बन्ध में हमें गीता के निम्न सूत्रों को देखना चाहिए ....... गीता अध्याय - 17 के 28 श्लोक , श्लोक - 18.19 - 18.39, 18.43 - 18.44 , 18.54 - 18.55 , 6.27, 2.52, 15.3, 6.42, 7.3, 7.19, 12.5, 14.20 आप जब धार्मिक साहित्य को पढते होंगे तो आप को जगह - जगह यह बात मिलती होगी - श्रद्धा में प्रभु बसता है लेकीन क्या आप कभी यह भी जाननें की कोशिश की है की श्रद्धा है क्या ? गीता श्लोक - 17.2 - 17.3 कहते हैं - गुणों के आधार पर श्रद्धा तीन प्रकार की होती है । गीता में जब आप ऊपर दिए गए सूत्रों को देखेंगे तो आप को मिलेगा ----- गुणों के आधार पर ...... [क] तीन प्रकार के लोग हैं [ख] सब के अपनें - अपनें कर्म हैं , अपनें -अपनें स्वभाव, त्याग , तप , ध्यान , साधना , यज्ञ , पूजा , प्रार्थना , ध्रितिका , बुद्धि , आस्था एवं श्रद्धा है । दो शब्द हैं - बिकल्प और निर्बिकल्प , साकार एवं निराकार , सकाम और निष्काम - आप इन शब्दों को समझिये और इनके आधार पर प्रभु के मार्ग को पहचाननें की कोशिश करिए । ऊपर के शब्दों का आधार है - कामना ; ऐसे भाव जिनके पीछे कामना होती है वे ज